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________________ 120 2-1-1-8-5 (381) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन पत्ते अर्धपक्व या अपक्व है तथा पुतिपुन्नाग याने कुतखल, तथा मध, मद्य, घी, और खोल याने मदिरा के नीचे जमा हुआ कर्दम (कादव-कीचड) यह सभी यदि पुराने हो तो ग्रहण न करें... क्योंकि- इन सभी पदार्थो में जीवजंतु उत्पन्न होतें हैं... यहां विभिन्न देश के शिष्यजनों को समझाने के लिये एक अर्थवाले हि अनेक शब्द कहे गये हैं... अथवा तो इन अनुप्रसूत, जात, संवृद्ध, अव्युत्क्रांत, अपरिणत एवं अविध्वस्त शब्दों में परस्पर थोडा थोडा अर्थभेद भी है... v सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु को कच्चा पत्र, (वृक्षादि का पत्ता), सचित्त पत्र या अर्द्धपक्व पत्र एवं शाक-भाजी आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए और सड़ी हुई खल एवं पुराना मद्य, मधु (शहद), घृत और मद्य के नीचे जमा हुआ कर्दम नहीं लेना चाहिए। क्योंकि ये पदार्थ बहुत दिनों के पुराने होने के कारण उनका रस विचलित हो जाता है और इस कारण उनमें अस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए मुनि को ये पदार्थ ग्रहण नहीं करने चाहिएं। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त घृत तो साधु के लिए कल्पनीय है। परन्तु, मद्य अकल्पनीय है, अतः मद्य शब्द कुछ विचारणीय है। क्योंकि सूत्र में कहा गया है कि पुराना मद्य एवं उसके नीचे जमा हुआ कर्दम (मैल) नहीं लेना, तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि नया मद्य लिया जा सकता है। किन्तु, आगमों में मद्य एवं मांस का सर्वथा निषेध किया गया है। अतः यहां इसका यह अर्थ है-मद्य के समान गुण वाला पदार्थ / यदि इसका तात्पर्य शराब से होता तो उसके अन्य भेदों का उल्लेख भी करते। क्योंकि सूत्र की यह एक पद्धति है कि जिस वस्तु का उल्लेख करते हैं. उसके सब भेदों का नाम गिना देते हैं। यहां मद्य शब्द के साथ अन्य नामों का उल्लेख नहीं होने से ऐसा लगता है कि मद्य का अर्थ होगा- उसके सदृश पदार्थ / आगम में युगलियों के अधिकार में दश प्रकार के कल्पवृक्षों में 'मातंय' कल्प वृक्ष का नाम आता है। उसके फल मद्य के समान मादक होते है। आजकल महुए के फलों को उसके समान समझ सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि मद्य शब्द मदिरा का बोधक नहीं है। आगम में मदिरा का प्रबल शब्दों में निषेध किया गया है। इसके लिए दशवैकालिक सूत्र का ५वां अध्ययन द्रष्टव्य है। दशवैकालिक सूत्र प्रायः आचाराङ्ग का पद्यानुवाद है। इससे प्रस्तुत सूत्र का मदिरा सदृश पदार्थ अर्थ ही उपयुक्त प्रतीत होता है। . आहार के विषय में और बातों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्म स्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 5 // // 381 // से भिक्खू वा० से जं० उच्छुमेरगं वा अंककरेलुगं वा कसेरूगं वा सिंघाडगं वा
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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