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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-8-4 (380) 119 V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि- साधु को अपक्व कन्द-मूल, वनस्पति एवं फल आदि नहीं लेने चाहिए। यदि कच्ची सब्जी शस्त्रपरिणत हो गई है तो वह ग्राह्य है, परन्तु, जब तक वह शस्त्रपरिणत नहीं हुई है, तब तक सचित्त है; अतः साधु के लिए अग्राह्य है। 'विरालियं' का अर्थ है-जमीन में उत्पन्न होने वाला कन्द विशेष / 'पलम्बजायं' का तात्पर्य फल से है। 'अबद्धा अत्थि फलं' का तात्पर्य है- वह फल जिस में अभी तक गुठली नहीं बन्धी है, ऐसे सुकोमल फल को 'सरडुय' कहते हैं 'मन्थु' का अर्थ चूर्ण होता है और 'साणुबीयं' का तात्पर्य है-वह बीज जिसकी योनि का अभी नाश नहीं हुआ है। 'झिज्झरी' शब्द लता विशेष का बोधक है। इस पाठ का तात्पर्य यह है कि साधु को सचित्त वनस्पति को ग्रहण नहीं करना चाहिए। पुनः आहार के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि सुधर्मस्वामी आगे का सूत्र कहतें हैं.. I सूत्र // 4 // // 380 // .. से भिक्खू वा से जं पुण आमडागं वा, पूइपिन्नागं वा, महुं वा, मज्जं वा, सप्पिं वा, खोलं वा, पुराणगं वा, इत्थ पाणा अणुप्पसूयाइं जायाइं सुंवाडाइं अवुयकताई अपरिणया इत्थ पाणा अविद्धत्था नो पडिगाहिज्जा || 380 / / II संस्कृत-छाया : .स: भिक्षुः वा सः यत् पुन:० आमपत्रं वा, पूतिपुन्नागं वा, मधु वा, मद्यं वा . सर्पिः वा खोलं वा, पुरानकं वा अत्र प्राणिन: अनुप्रसूता: जाता: संवृद्धाः अव्युत्क्रान्ता: अपरिणता अत्र प्राणिनः अविध्वस्ता: न प्रतिगृह्णीयात् || 380 // II सूत्रार्थ : - गृहपति कुल में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी अर्द्धपक्व शाक, सडी हुई खल, मधु, मद्य, सर्पि-घृत, खोल-मद्य के नीचे का कर्दम-कीच इन पुराने पदार्थों को ग्रहण न करे, कारण कि- इन में प्राणी-जीव उत्पन्न होते हैं, जन्मते हैं, तथा वृद्धि को प्राप्त होते हैं और इन में प्राणियों का व्युत्क्रमण, परिणमन तथा विध्वंस नहीं होता, अर्थात् सजीव है.अतः इसलिए मिलने पर भी उन पदार्थों को ग्रहण न करे। IV . टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जब ऐसा जाने कि- यह अरणिक एवं तंदुलीयक आदि के
SR No.004438
Book TitleAcharang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages608
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size14 MB
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