________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-8-1 (377) 113 इसी प्रकार का अन्य पानी, जो कि गुठली सहित, छाल सहित और बीज के साथ मिश्रित है, उसे यदि गृहस्थ भिक्षु के निमित्त बांस की छलनी से, वस्त्र से या बालों की छलनी से, एक बार अथवा अनेक बार छानकर और उसमें हुए गुठली छाल और बीजादि को छलनी के द्वारा अलग करके उसे दे तो साधु इस प्रकार के जल को अप्रासुक जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। IV टीका-अनुवाद : वह साधु या साध्वीजी म. जल के लिये गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर जाने कियह जल आम के घोवण का जल है या अंबाडकजल, या कोठे का जल, या बीजोरे का जल, या द्राक्ष का जल, या दाडिम का जल, या खजूर का जल, या (श्रीफल) नारियेल का जल, या केर का जल, या कोल का जल, या आमले का जल या इमली का जल या अन्य ऐसे प्रकार के जल कि- जो (अस्थि) कुलकंवाला है, छिल्लकेवाला है, बीजवाला है, अस्थि और बीज का स्वरूप आंवले आदि में विशेष रूप से प्रतीत होता है, तो ऐसे प्रकार के जल, यदि गृहस्थ साधुओं को देने के लिये,द्राक्ष आदि का आर्मदन (चोलना-दबाना) करके तथा छिलके तथा बीज को निकालने के लिये वस्त्र या सुघरी (पक्षी) के माले (छलनी) से छानकर लाकर साधुओं को दे, तब ऐसे प्रकार के जल उद्गम-दोषवाले होने के कारण से प्राप्त होने पर भी साधु ग्रहण न करें... उद्गम-दोष निम्न प्रकार के हैं... आधाकर्म साधु के लिये सचित्त को अचित्त कीया जाय, या अचित्त को पकाया जाय... 2. औदेशिक - पहले अपने लिये बनाये हुए लड्डू के चूरे में साधुओं को देने के लिये यदि गुड घी आदि से संस्कार करे तब वह आहारादि औद्देशिक दोषवाला होता है... और वह सामान्य एवं विशेष भेद से अनेक प्रकार का है कि- जो अन्य सूत्रों से जानीयेगा... 3. पूतिकर्म जो शुद्ध आहार आधाकर्मवाले आहार से मिश्रित किया जाय वह... पूतिकर्म... 4. मिश्र जो आहारादि पहले से हि साधु एवं गृहस्थों के लिये बनाया हो वह... मिश्रदोष... स्थापना जो आहारादि साधुओं को देने के लिये संभालकर रखा जाय, वह स्थापना-दोष...