________________ 114 2-1-1-8-1 (377) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 6. प्राभृतिका साधुओं की उपस्थिति को ध्यान में रखकर जो भी विवाहादि प्रसंग का समय (दिन) आगे-पीछे कीया जाय वह... प्रादृष्करण साधुओं को आहारादि देने के लिये गवाक्ष खीडकी-दरवाजे आदि का खोलना या प्रकाश (दीया-लाइट) करना वह प्रादुष्करण-दोष... 8. क्रीत - धन (पैसा) देकर खरीदकर आहारादि साधुओं को देना वह क्रीतदोष... 9. प्रामित्य साधुओं को देने के लिये जो आहारादि अन्य से "उधार" लेना वह प्रामित्य 10. परिवर्तित साधुओं को देने के लिये जो गृहस्थ अपने पडौशी के घर से कोंद्रव आदि के बदले में शालि-चावल आदि का अदलाबदला करे वह परिवर्तित- दोष... 11. अभ्याहृत 12. उद्भिन्न गृहस्थ अपने घर से आहारादि लाकर साधुओं के उपाश्रय (वसति) में जाकर उन्हे दे, वह अभ्याहृत दोष... गोमय या मिट्टी आदि से लेपे हुए बरतन को खोलकर आहारादि साधु को दे, तब उद्भिन्न-दोष होता है... माले पे रहे हुए आहारादि को निसरणी आदि के द्वारा उतारकर यदि साधुओं को दे, तब मालापहृत-दोष होता 13. मालापहृत नौकर आदि से बल जबरन लेकर जो आहारादि साधुओं को दीया जाय वह आच्छेद्य... दो-चार व्यक्तिओं की सामान्य स्वामीत्व वाले आहारादि यदि उनकी अनुमति लिये बिना हि कोई एक व्यक्ति साधुओं को दे, तब अनिसृष्ट-दोष... अपने लिये बन रही रसोई में यदि साधुओं का आगमन जानकर और अधिक रसोड (चावल आदि) का प्रक्षेप करे तब अध्यवपूरक-दोष होता है... 16. अध्यवपूरक -