________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 2-1-1-5-5 (363) 79 आज्ञा लिए बिना तथा रजोहरण आदि से प्रमार्जित किए बिना उसे खोले नहीं, और न उस घर में प्रवेश करे तथा न वहां से वापिस बाहर निकले। इससे स्पष्ट होता है कि- यदि गृहस्थ के घर का दरवाजा बन्द है और साधु को कार्यवश उसके घर में जाना है तो उस घर के व्यक्ति की आज्ञा से यतना पूर्वक द्वार को देखकर खोल सकता है और उसके घर में जा-आ सकता है। गृहस्थ के बन्द द्वार को उसकी आज्ञा के बिना खोलकर जाने से कई दोष लगने की सम्भावना है-१-यदि कोई महिला स्नान करी रही हो तब साधुको देखकर क्रोधित हो सकती है, २-घर का मालिक आवेश वश साधु को अपशब्द भी कह सकता है, 3-यदि उसके घर से कोई वस्तु चली जाए तो साधु पर उसका दोषारोपण भी हो सकता है और ४-द्वार खुलने से पशु अन्दर जाकर कुछ पदार्थ खा जाएं या बिगाड़ दे या तोड़-फोड़ कर दें तो उसका आरोप भी साधु पर लग सकता है। इस तरह बिना आज्ञा दरवाजा खोलकर जाने से कई दोष लगने की सम्भावना है, अतः साधु को घर के व्यक्ति की आज्ञा लिए बिना उसके घर के दरवाजे को खोलकर अन्दर नहीं जाना चाहिए। . गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद साधु को किस विधि से आहार लेना चाहिए, इसका उल्लेख सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहतें हैं... I सूत्र // 5 // // 33 || से भिक्खू वा से जं पुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुव्वपविटुं पेहाए नो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिट्ठिजा, से तमायाय एगंतमवक्कमिजा अणावायमसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा, आहट्ट दलइज्जा, से य एवं वइज्जा आउसंतो समणा ! इमे मे असणे वा, सव्वजणाए निसट्टे, तं भुंजह वा णं, तं परिभाएह वा णं, तं चेगइओ पडिग्गाहित्ता तुसिणीओ उवेहिज्जा, अवियाइं एयं मममेव सिया, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिज्जा, से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा से पुट्वमेव आलोइज्जा || - आउसंतो समणा ! इमे मे असणे वा सव्वजणाए निसिढे, तं भुंजह वा णं जाव परिभाएह वा णं, सेणमेणं परो वइज्जा-आउसंतो समणा ! तुमं चेव णं परिभाएहि, से तत्थ परिभाएमाणे नो अप्पणो खद्धं डायं ऊसढं रसियं मणुण्णं निद्धं, लुक्खं से तत्थ अमुच्छिए अगिद्धे अ(ना)गढिए अणज्झोववण्णे परो वइजा-आउसंतो समणा ! मा णं तुमं परिभाएहि, सव्वे वेगइआ ढिआउ भुक्खामो वा पाहामो वा, से तत्थ भुंजमाणे नो अप्पणा खद्धं, जाव लुक्खं, से तत्थ अमुच्छिए, बहुसममेव भुंजिज्ज वा पाइज्जा वा / / 383 ||