________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका +1-6-2-2(195) 33 (ओघो) इत्यादि का सापेक्ष या निरपेक्ष प्रकार से त्याग करके कोइक श्रावक जीवन का स्वीकार करता है, या श्रद्धा-सम्यग्दर्शन को हि धारण करता है, या कोइ तो मिथ्यात्व में चले जाता यहां यह प्रश्न होवे कि- वह साधु दुर्लभ ऐसे चारित्र को पाकर ऐसा क्यों करता है ? यहां सूत्रकार उत्तर देतें हैं कि- दुःसह ऐसे परीषह अनुक्रम से या एक साथ उपस्थित होने से वह साधु मानसिक व्याकुलता में उलझ जाता है और मोहनीय कर्म के तीव्र विपाकोदय से मतिमूढ होकर मोक्षमार्ग से भ्रमित होता है... अब मोक्षमार्ग का त्याग करनेवालों को कामभोग एवं धन की प्राप्ति के लिये जो परिस्थिति उपस्थित होती है, वह कहते हैं... जैसे कि- कामभोग के अशुभ अध्यवसाय (विचार) वाले उनको अंतराय के उदय से विरूप कामभोग भी प्राप्त नहि होते है, अथवा प्राप्त हो जाय तो भी अंतर्मुहूर्त मात्र काल में हि या कंडरीक मुनि की तरह एक अहोरात्र (दिवस) काल में हि शरीर का भेद याने विनाश (मरण) होता है, या उसके बाद कभी भी मरण पाकर वह प्राणी अनंतकाल पर्यंत पंचेन्द्रियत्व को प्राप्त नहि कर शकता, अर्थात् एकेंद्रिय या विकलेंद्रिय में हि जन्म-मरण करते रहते हैं... इस प्रकार वह भोगाभिलाषी प्राणी बहोत सारे अपाय (संकट-उपद्रव) वाले उन कामभोगों से अपूर्ण होता हुआ अर्थात् अतृप्त रहता हुआ मरण पाता है... अब जो प्राणी-मनुष्य मोक्ष के समीप है, याने आसन्न भवी है; वे लघुकर्मी होने के कारण से देव-गुरू की कृपा से कथंचित् चारित्र परिणाम को प्राप्त करके प्रवर्धमान शुभ * अध्यवसायवाले होतें हैं; इत्यादि बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... V सूत्रसार : पंचाचारात्मक संयम-साधना का पथ फूलों का नहीं किंतु शूलों का मार्ग है। त्याग के पथ पर बढ़ने वाले साधक के सामने अनेक मुसीबतें, कठिनाइयां एवं परेशानियां आती हैं। उसे प्रत्येक क्षेत्र में परीषहों के शूल बिछे मिलते हैं। जैसे कि- कभी समय पर अनुकूल भोजन नहीं मिलता, तो कभी अनुकूल पानी का अभाव होता है। कभी ठहरने के लिए व्यवस्थित मकान उपलब्ध नहीं होता, तो कभी ठीक शय्या-वसति नहीं मिलती। इसी प्रकार गर्मी-सर्दी, वर्षा आदि अनेक परीषह सामने आते हैं। इस प्रकार संयम-साधना का मार्ग परीषहों से भराभरा है। अन्यत्र भी कहा है- 'श्रेयस्कर- कल्याणप्रद मार्ग में अनेक विघ्न आते हैं। अत: उन विघ्नों पर विजय प्राप्त करने वाला साधक ही अपने साध्य को सिद्ध कर सकता है। परन्तु, कुछ साधक परीषहों के प्रबल वातावरण को सहन नहीं कर सकते। प्रबल