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________________ 20 // 1-6-1-5(190) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन गंडमाला-यह रोग वात, पित्त, कफ और इन तीनों का सन्निपात, इस प्रकार यह चार प्रकार का होता है। लोक भाषा में इसे कंठमाला कहते हैं। इसमें सन्निपात असाध्य रोग माना गया है। // 1 // कुष्ठरोग-यह रोग अठारह प्रकार का होता है। इसमें सात प्रकार के महाकुष्ठ-असाध्य और ग्यारह प्रकार के क्षुद्र-सामान्य कुष्ठ होते हैं। १-अरुण, २-उदुम्बर, ३-निश्यजिह्व, ४कपाल, ५-काकनाद, ६-पौंडरीक और ७-दट्ठ ये महाकुष्ठ हैं। १-स्थूलारूष्क, २-महाकुष्ठ, ३-एक कुष्ठ, ४-चर्मदल, ५-परिसर्प, ६-विसर्प, ७-सिध्म, ८-विचर्चिका, ९-पिष्टिम, १०पामा, ११-शतारुक ये क्षुद्र कुष्ठ कहलाते हैं। // 2 // राजयक्ष्मा-इसे क्षय रोग या टी.बी. भी कहते हैं। यह रोग मल-मूत्र आदि को रोकने से, धातु क्षय से, अत्यन्त साहस एवं विषम भोजन से होता है। // 3 // अपस्मार-इस रोग में स्मृति के ऊपर आवरण आ जाता है। इस रोग में रोगी को मूर्छा आ जाती है। इसे लोक भाषा में मृगी एवं अंग्रेजी में हिस्टेरिया की बीमारी भी कहते हैं। // 4 // काणत्व-एक आंख की रोशनी का चला जाना। यह रोग गर्भ में भी हो जाता है और जन्म के बाद भी हो शकता है। // 5 // जाड्यता-इस रोग में शरीर संचालन क्रिया से शून्य हो जाता है। // 6 // कुणि-इस रोग में एक पैर या एक हाथ बड़ा और दूसरा पैर या हाथ छोटा हो जाता है। // 7 // कुब्जरोग-इस में पीठ पर कुबड़ उभर आता है। // 8 // उदररोग-यह रोग वात-पित आदि के प्रकोप से होता है। यह आठ प्रकार का होता है-१-जलोदर, २-वातोदर, ३-पित्तोदर, ४-कफोदर, ५-कंठोदर, ६-प्लीहोदर, ७-बद्धोदर और ८-गुदोदर। // 9 // मूकरोग-इस रोग के कारण मनुष्य गूजा हो जाता है। वह बोल नहीं सकता। यह 65 प्रकार का है और 7 स्थानों में होता है। वे स्थान ये हैं-१-आठ ओष्ठ के, २-पन्द्रह दन्त मूल के, ३-आठ दान्तों के, ४-पांच जिव्हा के, ५-नव तालु के, ६-सत्रह कण्ठ के और ७-तीन सब स्थानों के, इस प्रकार कुल मिलाकर 65 प्रकार के मुखरोग होते हैं। // 10 // . शून्यत्व-इसमें अंगोपांग शून्य हो जाते हैं। यह रोग वात, पित्त, श्लेष्म, सन्निपात, रक्त और अतिघात से उत्पन्न होता हैं। // 11 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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