________________ 334 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन % 3D श्री आचाराङ्गसूत्रस्य प्रथमश्रुतस्कन्धान्तर्गत 6-7-8-1 अध्ययनानां निर्युक्तयः 240 (अध्ययन-६) पढमे नियगविहुणणा कम्माणं बितियए तइयगंमि / उवगरणसरीराणं चउत्थए गारवतिगस्स // 241 उवसग्गा सम्माणयविहूआणि पंचमंमि उद्देसे। दव्वधूयं वत्थाई भावधूयं कम्म अट्ठविहं / / 242 अहियासित्तुवसग्गे दिव्वे माणुस्सए तिरिच्छे य। जो विहूणइ कम्माई भावधूयं तं वियाणाहि // (सप्तममध्ययनं व्युच्छिन्नम्) यहां गाथांक 350 से 356 तक है... अतः वहां देखें... 243 (अध्ययन-८) असमणुन्नस्स विमुक्खो पढमे बिइए अकप्पियविमुक्खो। पडिसेहणा य रुट्ठस्स चेव सब्भावकहणा य॥ 244 . तइयंमि अंगचिट्ठाभासिय आसंकिए य कहणा य। सेसेसु अहिगारो उवगरणसरीरमुक्खेसु॥ 245 उद्देसंमि चउत्थे वेहाणसगिद्धपिट्ठमरणं च। पंचमए गेलन्नं भत्तपरिन्ना च होइ बोद्धव्वं / 246 छटुंमि उ एगत्तं इंगिणिमरणं च होइ बोद्धव्वं / सत्तमए पडिमाओ पायवगमणं च नायव्वं / / . 247 अणुपुत्विविहारीणं भत्तपरिन्ना य इंगिणीमरणं / पायवगमणं च तहा अहिगारो होइ अट्ठमए।।