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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१- 9 - 3 -7 (310) 293 II संस्कृत-छाया : एवमपि तत्र विहरन्तः स्पृष्टपूर्वाः आसन् श्वभिः / संलुञ्न्यमानाः श्वभिः, दुश्चराणि तत्र लाढेषु // 309 // III सूत्रार्थ : . उस देश में बौद्धादि भिक्षु लाठी लेकर चलते थे, फिर भी इधर उधर विचरण करते हुए कुत्ते उन्हें काट खाते थे। अत: उस अनार्य भूमि में भिक्षुओं एवं साधु-सन्तों का भ्रमण करना दुष्कर था। IV टीका-अनुवाद : उस अनार्य देश में शाक्यादि श्रमण देह प्रमाण लकडी (दंड) आदि लेकर विचरतें थें, तो भी वहां कुत्ते उनको भी काटते थे, क्योंकि- कुत्तों को रोकना अशक्य होता है... अनेक कुत्ते मीलकर चारों तरफ से काटने के लिये घेर लेते थे... तथा उस अनार्य देश के गांव भी गमनागमन के लिये दुश्चर याने आना-जाना कष्टदायक हो ऐसे विषम रास्तेवाले वे गांव थे... वहा अनार्य लोग भी गमनागमन में बहोत कष्ट पातें थें... V सूत्रसार : . लाढ़ देश के लोग इतने कठोर थे कि- वहां साधुओं को अनेक तरह के कष्ट दिए जाते थे। बौद्ध भिक्षु कुत्तों से बचने के लिए अपने साथ डण्डा रखते थे, फिर भी वे पूर्णतया सुरक्षित नहीं रह पाते थे। कभी-कभी कहीं न कहीं से कुत्ते काट ही खाते थे। परन्तु, भगवान * महावीर जो अपने आत्म बल पर विचरते थे, उन्हें तो अनेक बार कुत्ते काट खाते थे। फिर भी वे उनका प्रतिकार नहीं करते थे। यहां यह प्रश्न हो सकता है कि- इतने भयंकर देश में भगवान ने क्यों विहार किया ? इसका समाधान करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... सूत्र // 7 // // 310 // 1-9-3-7 . निहाय दंडं पाणेहिं, तं कायं वोसिज्जमणगारे। अह गामकंटए भगवंते अहियासए अभिसमिच्चा // 310 // // संस्कृत-छाया : निधाय दंडं प्राणिषु, तं कायं व्युत्सृज्य अनगारः। अथ ग्रामकण्टकान् भगवान् अध्यासयति अभिसमेत्य // 310 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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