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________________ 292 // 1- 9 - 3 - 6 (309) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन III सूत्रार्थ : इस प्रकार के अनार्य देश में श्रमण भगवान ने पुनः 2 विहार किया था। उस वज्र भूमि में निवसित क्रोधी मनुष्य भिक्षुओं के पीछे कुत्ते छोड देते थे / अतः परिव्राजक आदि साधु अपने शरीर से चार अंगुल अधिक लम्बी लाठी या नालिका लेकर उस देश में विचरते थे। जिससे कुत्ते उन पर प्रहार न कर सकें। IV टीका-अनुवाद : यहां कहे गये क्रूर स्वभाववाले अनार्य लोग जहां रहते हैं, ऐसे अनार्यदेश में प्रभुजी ने बार बार विहार कीया था... उस वज्रभूमी में अधिकतर लोग रूक्ष असार भोजन खानेवाले होने से वे अनार्य लोग प्रकृति से हि क्रोधी थे, इस कारण से श्रमण भगवान महावीरस्वामीजी . . को देखकर वे अनार्य लोग कदर्थना-उपसर्ग करतें थे... ___ यद्यपि उस देश में अन्य शाक्यादि श्रमण थे, किंतु वे कुत्तों को दूर करने के लिए देह प्रमाण या चार अंगुल अधिक देहप्रमाण यष्टि याने लकडी साथ में लेकर विचरतें थे... v सूत्रसार : प्रस्तुत गाथा में लाढ़ देश में लोगों के खान-पान एवं जीवन व्यवहार का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया हे कि- वे लोग तुच्छ एवं तामस आहार करते थे। इससे उनकी वृत्ति क्रूर हो गई थी। आहार का भी मनुष्य के जीवन पर असर होता है। तामस पदार्थों का अधिक उपभोग करने वाले व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है। उनका स्वभाव भी अति क्रूर था। वे साधु संन्यासियों के पीछे कुत्ते छोड देते थे। इस लिए बौद्ध भिक्षु आवि साधु संन्यासी भिक्षा आदि को जाते समय अपने शरीर से 4 अंगुल ऊंचा डण्डा रखते थे। इस तरह वे कुत्तो से अपना बचाव करते थे। परन्तु, भगवान महावीर पूर्ण अहिंसक थे। वे किसी भी प्राणी को भयभीत नहीं करते थे। इसलिए अपने हाथ में डण्डा आदि कोई भी हथियार नहीं रखते थे। वे किसी भी संकट से भयभीत नहीं होते थे, वे प्रत्येक संकट का स्वागत करते थे एवं समभाव पूर्वक उसे सहन करते थे। भगवान का उस प्रदेश में भ्रमण अपने कर्मों की निर्जरा एवं अज्ञान अंधकार में भटकते हुए प्राणियों के अभ्युदय के लिए होता था। इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... सूत्र // 6 // // 309 // 1-9-3-6 एवं पि तत्थ विहरता, पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणिएहिं। संलुञ्चमाणा सुणएहिं, दुच्चराणि तत्थ लाढ़ेहिं // 309 //
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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