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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 0 - 09 217 है ? इस प्रश्न का उत्तर नियुक्तिकार महर्षि स्वयं हि नियुक्ति की गाथाओं से कहते हैं... नि. 283 यहां उदाहरण देकर कहतें हैं कि- जिस प्रकार मलिन वस्त्र जल आदि द्रव्यों से शुद्ध होता है, इसी प्रकार आठों प्रकार के कर्मो से मलिन जीव की शुद्धि, भाव-उपधान स्वरूप छह (6) बाह्य एवं छह (6) अभ्यंतर अर्थात् बारह (12) प्रकार की तपश्चर्या से हि होती है... ____ कमों के क्षय में हतुभूत द्वादशविध तपश्चर्या को हि यहां उपधानश्रुत के माध्यम से ग्रहण कीया गया है... तथा “तत्त्वभेदपर्यायैः व्याख्या” इस न्याय से पर्याय का स्वरूप दिखाते हुए कहतें हैं कि- तपश्चर्या के अनुष्ठान के द्वारा ही कर्मो का अवधूनन याने निर्जरा अर्थात् कर्मो का क्षय होता है... नि: 284 अवधूनन... अपूर्वकरण के द्वारा कर्मो की ग्रंथी का भेद करना... यह कार्य तपश्चर्या ___के बारह भेद में से कोइ भी भेद के सामर्थ्य से हि होता है... तपश्चर्या का यह ग्रंथिभेद रूप सामर्थ्य तपश्चर्या के शेष ग्यारह भेदों में भी है, ऐसा सर्वत्र जानीयेगा... 2. धूनन... कर्मो की ग्रंथी का भेद होने के बाद अनिवृत्तिकरण के द्वारा सम्यक्त्व की प्राप्ति... नाशन... कर्मप्रकृतियों का स्तिबुकसंक्रमण के द्वारा अन्य कर्मप्रकृति में परिणमन... विसर्जन... विनाशन... शैलेशी अवस्था में सकल कर्मो का विनाश होने से आत्मप्रदेशों में कर्मो का अभाव होना ध्यापन... उपशम श्रेणी में कर्मो का उदय न होना वह ध्यापन... 6. क्षपण... क्षपकश्रेणी में अप्रत्याख्यानादि कषायों का अनुक्रम से क्षय कर के मोहनीय कर्म का सर्वथा अभाव करना... 7. शुद्धीकरण... अनंतानुबंधि कषाय के क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति... छेदन... उत्तरोत्तर शुभ अध्यवसायों की श्रेणीमें आरोहण कर के कर्मो की स्थिति में हानि करना अर्थात् कर्मो की स्थिति को अल्प करना... भेदन... बादरसंपराय याने नवमे गुणस्थान में रहा हुआ साधु संज्वलन लोभ का खंड खंड करे...
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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