________________ 208 1 -8 - 8 - 23 (262) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन IV टीका-अनुवाद : इस साधु ने पादपोपगमन अनशन स्वीकारा है, ऐसा जानकर यदि कोइ राजा आदि लोग, वस्त्र-अलंकार इत्यादि मनोज्ञ भोग सामग्री के उपभोग के लिये निमंत्रण करे... अनुकूल होकर विनय करे तब वह साधु सोचे कि- यह शब्दादि काम-गुण-भोगोपभोग समग्री विनश्वरशील है, ऐसा सोचकर अनुराग न करे.... अथवा इच्छा-मदन स्वरूप काम भोग के लिये कोइ राजादि लोग राजकुमारी कन्या का प्रदान करे... तो भी वह साधु अशुचिभावना की विभावना से गृद्धि-आसक्ति स्वरूप अनुराग न करे... अथवा इच्छा स्वरूप लोभ... अर्थात् जन्मांतर में चक्रवर्ती राजा या देव-इंद्र इत्यादि .. पद की अभिलाषा स्वरूप निदान (नियाj) वह साधु न करे... अर्थात् चक्रवर्ती की ऋद्धि देखकर वह साधु संभूति मुनि (ब्रह्मदत्त) की तरह चक्रवर्ती पद का निदान (नियाj) न करे... ___ आगमसूत्र में भी कहा है कि- साधु (अणगार) कभी भी इस लोक के चक्रवर्ती आदि की समृद्धि की आशंसा न करे, तथा परलोक में देवलोक की समृद्धि की आशंसा न करे, मैं जीवित हि रहुं ऐसी आशंसा भी न करे तथा मैं जल्दी मर जाउं ऐसी भी आशंसा न करे... और पांचों इंद्रियों के मनोज्ञ कामभोगसुख की वांछा न करे... तथा वर्ण याने संयम अथवा मोक्ष... यह वर्ण अतीन्द्रिय होने से दुर्जेय है, अथवा ध्रुव याने शाश्वत अथवा निर्दोष ऐसा जो वर्ण अर्थात् संयम और शाश्वत मोक्ष को सम्यग् देखकर... अथवा तो ध्रुव याने शाश्वत और वर्ण याने यश:कीर्ति अर्थात् चिरकालीन यश:कीर्ति वाले सिद्ध पद की पर्यालोचना कर के वह साधु काम-इच्छा-लोभ का विक्षेप याने विनाश करे... अर्थात् आत्म समाधि में रहे... V सूत्रसार : साधना का उद्देश्य ही समस्त कर्मों से मुक्त होन्म है, अतः साधक के लिए समस्त भोगों का त्याग करना अनिवार्य है। इसी बात को बताते हुए कहा गया है कि- यदि कोई राजा-महाराजा आदि विशिष्ट भोग सम्पन्न व्यक्ति उक्त साधक को देखकर कहे कि- तुम इतना कष्ट क्यों उठाते हो ? मेरे महलों में चलो में तुम्हें सभी भोग साधन सामग्री दूंगा, तुम्हारे जीवन को सुखमय बना दूंगा। इस तरह के वचनों को सुनकर साधक विषयों की ओर आसक्त न होवे। वह सोचे कि- जब भोगों को भोगने वाला शरीर ही नाशवान है, तब भोग मुझे क्या सुख देंगे ? वस्तुतः ये काम-भोग अनन्त दु:खों को उत्पन्न करने वाले हैं, संसार को बढ़ाने वाले हैं। इस तरह सोचकर वह भोगों की आकांक्षा भी न करे और न यह निदान ही