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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-8-8-21 (260), 205 देहे परीषहाः // 260 // III सूत्रार्थ : अचित्त स्थंडिल भूमि आदि को प्राप्त करके वह अपनी आत्मा को वहां स्थापित करे। वह अपने शरीर का पूर्णत: व्युत्सर्ग करके यह सोचे कि- जब यह शरीर हि मेरा नहीं है तब इस शरीर को कष्ट परीषह आवे तब मुझे इन कष्टों से क्या ? मैं तो चेतनमय आत्मा हुं यह शरीर अचेतन पुद्गल का पिंड है, इत्यादि... भावना से वह उत्पन्न होने वाले परीषहों को सहन करे। IV टीका-अनुवाद : अचित्त याने अचेतन ऐसी स्थंडिल भूमि एवं फलक याने पाट-पाटीया इत्यादि प्राप्त करके अपने आप को स्थापित करें... कोइ साधु मात्र काष्ठ (लकडी) के थंभा का आलंबन (टेका) लेकर खडा रहे... चारों प्रकार के अशनादि आहार का त्याग कर के मेरु पर्वत की तरह निष्प्रकम्प (अचल) वह साधु आलोचनादि प्रायश्चित विधि करके गुरुजी की अनुमति प्राप्त होने पर पादपोपगमन अनशन का स्वीकार करे... ___सर्व प्रकार से देह की ममता का त्याग कीये हुए उस साधु को जो कोइ उपसर्ग एवं परीषह आवे उन्हें समभाव एवं समाधि में रहकर सहन करे अर्थात् परिज्ञान करे... और सोचे कि- यह शरीर अब मेरा नहि है, मैंने तो देह का परित्याग कीया है, अतः इन परीषह एवं उपसर्गों की बूरी असर मुझे नहि होनी चाहिये... अथवा तो यह परीषह एवं उपसर्ग मेरे लिये अहितकर नहि है, किंतु औषधोपचार की तरह मेरे आत्मा को निर्मल करनेवाले सदुपाय हि है... अत: पीडा का उद्वेग साधु को नहि होता... किंतु कर्मशत्रुओं को पराजित करने में परीषह सहायक हि हैं ऐसा वह साधु मानता है... v सूत्रसार : पादोपगमन अनशन को स्वीकार करने वाले साधक को निर्दोष तृण शय्या एवं तख्त आदि अर्थात् जीव-जन्तु आदि से रहित शय्या आदि का, एवं हरियाली, बीज, अंकुर एवं जीव-जन्त से रहित स्थंडिल भमि का उपयोग करना चाहिए। उसे अपने शरीरी की ममता का भी सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि- मेरी आत्मा इस शरीर से पृथक् है। इसके उपर मेरा कोई अधिकार नहीं है। यह शरीर एक दिन अवश्य ही नष्ट होना है। और यह आत्मा सदा स्थित रहने वाला है। अत: वह शरीर की बिल्कुल चिन्ता न करते
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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