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________________ 192 // 1-8-8-11 (250) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन I सूत्र // 11 // // 250 // 1-8-8-11 गंथेहिं विवित्तेहिं आउकालस्स पारए / पग्गहियतरगं चेयं दवियस्स वियाणओ // 250 // II संस्कृत-छाया : . ग्रन्थैः विविक्तैः आयुः कालस्य पारगः / प्रगृहीततरकं चेदं द्रविकस्य विजानतः // 250 // III सूत्रार्थ : बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ याने परिग्रह का त्याग करने से मुनि आयुपर्यन्त समाधि धारण कर शकता है, एवं आचाराङ्गादि विविध शास्त्रों के द्वारा आत्म-चिन्तन में संलग्न रहता हुआ समय का ज्ञाता बने अर्थात् जीवन पर्यंत समाधि रखे। प्रस्तुत गाथा के अन्तिम दो पादों में सूत्रकार ने इंगित मरण का वर्णन किया है। यह इंगित मरण भक्तपरिज्ञा से विशिष्टतर है अत: उसकी प्राप्ति संयमशील गीतार्थ मुनि को ही हो सकती है अन्य को नहीं। IV टीका-अनुवाद : शरीर आदि बाह्य एवं राग-द्वेषादि अंतरंग ग्रंथ याने परिग्रह से मुक्त तथा अंगप्रविष्ट द्वादशांगी और अनंगप्रविष्ट याने उपांगादि सूत्र एवं प्रकरणादि ग्रंथों से अंतरात्मा को भावित करनेवाले साधु धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान में रहकर मृत्युकाल का पारगामी होते हैं... अर्थात् अंतिम उच्छ्वास-नि:श्वास पर्यंत शुभ-भाव समाधि में रहकर देवलोक या मोक्ष पद को पाते हैं... इस प्रकार भक्तपरिज्ञा मरण की बात हुइ... ___ अब इंगितमरण की बात कहतें है... भक्तप्रत्याख्यान की अपेक्षा से चारों प्रकार के आहारादि का त्याग करके विशिष्ट धृति एवं संघयण बलवाले साधु इंगित प्रदेश में संथारा प्रमाण भूमी में आवागमन की मर्यादा करके इंगितमरण नामक अनशन करते हैं... यह इंगितमरण के लिये वह साधु योग्य है कि- जिन्हों ने कम से कम नव पूर्व का अध्ययन करके गीतार्थता पायी है अर्थात् सूत्र-अर्थ तदुभय में परिपूर्ण हैं... इस इंगित मरण-अनशन स्वीकारने के पूर्व संलेखना एवं तृण संस्तारकादि जो पूर्व भक्तपरिज्ञा के अधिकार में कहा है वह सब कुछ यहां भी जानीयेगा... सूत्रसार : प्रस्तुत गाथा में भक्तप्रत्याख्यान और इंगितमरण अनशन स्वीकार करने वाले मुनि
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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