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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-8- 6 - 3 (233) // 161 * चिन्तनशील साधक को आहार कैसे करना चाहिए। इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 3 // // 233 // 1-8-6-3 से भिक्खू वा भिकखुणी वा, असणं वा ४.आहारेमाणे नो वामाओ हणुयाओ दाहिणं हणुयं संचारिज्जा आसाएमाणे, दाहिणाओ वामं हणुयं तो संचारिज्जा आसाएमाणे, से अणासायमाणे लाघवियं आगममाणे तवे से अभिसमण्णागए भवइ, जमेयं भगवता पवेइयं तमेवं अभिसमिच्चा सव्वओ सम्मत्तमेव समभिजाणीया // 233 // // संस्कृत-छाया : ___स: भिक्षुः वा भिक्षुणी वा अशनं वा 4 आहारयन् न वामतः हनुत: दक्षिणां हनु सञ्चारयेत् आस्वादयन्, दक्षिणात: वामां हनुं न सञ्चारयेत् आस्वादयन्, स: अनास्वादयन् लाघविकं आगमयन् तपः तस्य अभिसमन्वागतं भवति, यदेतत् भगवता प्रवेदितं तदेवं अभिसमेत्य सर्वतः सम्यक्त्वमेव समभिजानीयात् // 233 // III सूत्रार्थ : .. वह साधु या साध्वी आहार-पानी, खादिम और स्वादिम आदि पदार्थों का उपभोग करते समय बाएं कपोल से दहिने कपोल की और एवं दाहिने से बाएं कपोल की ओर आस्वादन करता हुआ आहार-कवल का संचार न करे। किन्तु वह आहार का आस्वादन न करता हुआ आहार की लाघवता को जानकर तप के सन्मुख होता है। जिस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने प्रतिपादन किया है उसे साधु सर्व प्रकार और सर्वात्मभाव से सम्यक्तया जानने का एवं समताभाव का परिपालन करने का प्रयत्न करे। IV. टीका-अनुवाद : पूर्वके सूत्रों में कहे गये साधु या साध्वीजी म. उद्गम - उत्पादन एवं एषणा के 16 , 16 + 10 = 42 दोषों से रहित आहारादि की गवेषणा करके ग्रहणैषणा से शुद्ध आहारादि प्राप्त कीये... किंतु उन आहारादि को ग्रासैषणा के अंगार आदि पांच दोषों का त्याग करके हि वापरें (आहार करें...) अंगार दोष याने सरस आहारादि में राग और धूम दोष याने नीरस आहारादि में द्वेष... इस प्रकार यदि आहारादि में सरसता हो तो अंगार दोष लगे और नीरसता लगे तो धूम दोष होता है... किंतु यदि कारण हि न हो तो कार्य भी न हो इस न्याय से कहतें हैं कि- साधु आहारादि को वापरती वख्त मुह में बायें से दायें एवं दायें से बायें की और आहारादि को स्वाद के लिये न ले जावें... क्योंकि- आहारादि को मुह में दायें से बायें और
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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