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________________ 158 // 1-8-6-1(231) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 8 उद्देशक - 6 卐 इंगितमरणम् // पांचवा उद्देशक कहा, अब छठे उद्देशक का प्रारंभ करते हैं... यहां परस्पर इस प्रकार का संबंध है कि- पांचवे उद्देशक में ग्लानावस्था में भक्तप्रत्याख्यान का विधान कहा, अब यहां धृति एवं संहननादि बलवाला साधु एकत्व भावना के द्वारा इंगितमरण-अनशन करे... इस संबंध से आये हुए इस छठे उद्देशक का सूत्रानुगम में यह पहला सूत्र है... I सूत्र // 1 // // 231 // 1-8-6-1 जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिवुसिए पायाबिईएण, तस्स णं नो एवं भवइ बिइयं वत्थं जाइस्सामि, से अहेसणिज्जं वत्थं जाइज्जा, अहापरिग्गाहियं वत्थं धारिज्जा, जाव गिम्हे पडिवण्णे अहापरिजुण्णं वत्थं परिठ्ठविज्जा, परिट्ठवित्ता अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणीया // 231 // // संस्कृत-छाया : यः भिक्षुः एकेन वस्त्रेण पर्युषित: पात्रद्वितीयेन, तस्य च न एवं भवति-द्वितीयं वस्त्रं याचिष्ये, सः यथा एषणीयं वस्त्रं याचेत, यथापरिगृहीतं वस्त्रं धारयेत्, यावत् ग्रीष्मे प्रतिपन्ने यथा परिजीर्णं वस्त्रं परिष्ठापयेत्, परिष्ठाप्य अथवा एकशाटक: अथवा अचेल:, लाघविकं आगच्छन् यावत् सम्यक्त्वमेव समभिजानीयात् // 231 // ' III सूत्रार्थ : जो भिक्षु एक वस्त्र और दूसरे पात्र से युक्त है। उस को इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न नहीं होता कि- शीतादि के लगने पर मैं दूसरे वस्त्र की याचना करूंगा। यदि उसका वस्त्र सर्वथा जीर्ण हो गया है तो फिर वह दूसरे वस्त्र की याचना कर सकता है। याचना करने पर उसे जैसा वस्त्र मिले वह उसी रूप में धारण करे और ग्रीष्म ऋतु के आजाने पर जीर्ण वस्त्र को त्याग दे या एक शाटक-चादर रखे या अचलेक बन जाए। इस प्रकार वह लाघवता को प्राप्त होता हुआ सम्यक्तया समभाव को जाने। IV टीका-अनुवाद : सूत्रार्थ सुगम है... अभिग्रह के अनुसार एक पात्र एवं एक वस्त्र को धारण करनेवाला
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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