________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-8-1-1(210) // 97 से आहार की इच्छा का हि विच्छेद हो यह यहां तात्पर्य है... यह बात आगे की दो गाथा से कहते हैं... नि. 274, 275 तपश्चर्या में निष्णात (पंडित) वह है कि- जो सदा प्रतिदिन के बत्तीस कवल मात्रा प्रमाण आहार में भी संक्षेप करे... तथा आहार के बिना दो-तीन दिन या पांच-छह दिन रहकर पारणा करे... और पारणे में भी अल्प आहार लें... क्योंकि- उन्हें अनशन का स्वीकार करना हैं... इस प्रकार आहार की मात्रा (प्रमाण) घटाते हुए बारह साल की संलेखना के बाद भक्त प्रत्याख्यान (अनशन) करें... नाम निष्पन्न निक्षेप और उसकी नियुक्ति कही, अब सूत्रानुगम में अस्खलितादि गुण युक्त सूत्र का उच्चार करें... वह सूत्र यह रहा... श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 8 उद्देशक - 1 . कुवादि-परिचय त्याग I सूत्र // 1 // // 210 // 1-8-1-1 से बेमि समणुण्णस्स वा असमणुण्णस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा नो पदिजा नो निमंतिजा नो कुजा वेयावडियं परं आढायमाणे त्तिबेमि // 210 // // संस्कृत-छाया : सोऽहं ब्रवीमि-समनोज्ञस्य वा असमनोज्ञस्य वा अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा वस्त्रं वा पतद्ग्रहं वा कम्बलं वा पादपुञ्छनं वा न प्रदद्यात् न निमन्त्रयेत् न कुर्यात् वैयावृत्त्यं परं आद्रियमाणः इति ब्रवीमि // 210 // III सूत्रार्थ : हे आर्य ! पार्श्वस्थ मुनि या शिथिलाचारी (जैन साधु के वेश में स्थित किंतु चारित्र से हीन) साधु या जैनेतर भिक्षुओं को विशेष आदरपूर्वक अन्न, पानी, खादिम-मिष्टानादि एवं स्वादिम-लवंगादि, वस्त्र, पात्र, कम्बल और रजोहरण आदि न देवे, न निमन्त्रित करे और न उनका वैयावृत्त्य करे। इस प्रकार में कहता हूं।