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________________ 90 // 1 - 8 - 0 - 0 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन ____ तीसरे उद्देशक में- गोचरी के लिये गृहस्थों के घर में गये हुए साधु को शीत आदि से शरीर में कंपन हो; तब गृहस्थ को ऐसी शंका हो कि- यह साधु इंद्रियों के विषयों में आसक्त है, या शृंगारभाव के आवेश से इस साधु का शरीर कांप रहा है... इत्यादि गृहस्थ की शंका को दूर करने के लिये साधु यथावस्थित सच्ची बात का कथन करे... शेष पांच (4 से 8) उद्देशक में अर्थाधिकार इस प्रकार है- ४-चौथे उद्देशक में- शरीर एवं उपकरणों का त्याग जो पहले संक्षेप में कहा था; वह यहां विस्तार से कहेंगे... जैसे किवैहानस याने शरीर को बांध के लटका देना तथा गृद्धपृष्ठ याने यह शरीर के मांसादि मेरे नहि है; इत्यादि हृदय के भाव के साथ गृद्ध आदि पक्षीओं के द्वारा देह का विनाश करना... यह वैहानस एवं गृद्धपृष्ठ दोनों अर्थाधिकार मरण के हि प्रकार हैं... 5. पांचवे उद्देशक में ग्लान याने बिमारी का स्वरूप एवं भक्तपरिज्ञा का स्वरूप कहेंगे... 6. छठे उद्देशक में- एकत्व भावना तथा इंगितमरण का स्वरूप कहा जाएगा... सातवे उद्देशक में- साधुओं की एक माह आदि बारह प्रतिमाओं का स्वरूप तथा पादपोपगमन अनशन का स्वरूप कहेंगे... आठवे उद्देशक में- क्रमानुसार विहार करनेवाले एवं दीर्घकाल पर्यंत चारित्र का पालन करनेवाले साधुओं को शास्त्रार्थ ग्रहण एवं अध्यापन के बाद जब संयमाचरण, अध्ययन एवं अध्यापन क्रियाओं में श्रम लगता हो; एवं जब शिष्यवर्ग भी गीतार्थ हो चुके हो; तब वह मुनी उत्सर्ग से बारह (12) वर्ष पर्यंत संलेखना करके भक्तपरिज्ञा या इंगितमरण या पादपोपगमन प्रकार से अनशन स्वीकारें... यह नियुक्ति की पांच गाथाओं में उद्देशार्थाधिकार का संक्षिप्त अर्थ है, विस्तृत अर्थ तो प्रत्येक उद्देशक में कहा जाएगा... ; अनुयोग द्वार के द्वितीय निक्षेप द्वार में निक्षेप के तीन प्रकार है... 1. ओघनिष्पन्न निक्षेप... 2. नाम निष्पन्न निक्षेप... 3. सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप... उनमें ओघनिष्पन्न निक्षेप में “अध्ययन' पद के निक्षेप... नामनिष्पन्न निक्षेप में “विमोक्ष' नाम के निक्षेप कहेंगे... नि. 259 अब विमोक्ष पद के निक्षेप नियुक्तिकार कहते हैं... विमोक्ष पद के छह (6) निक्षेप होते हैं... 1. नाम, 2. स्थापना, 3. द्रव्य, 4. क्षेत्र, 5. काल, 6. भाव-विमोक्ष निक्षेप... इनमें द्रव्य विमोक्ष निक्षेप के दो प्रकार है... आगम से एवं नोआगम से... आगम से विमोक्ष याने ज्ञाता किंतु अनुपयुक्त... और नोआगम से विमोक्ष के तीन भेद हैं... ज्ञ शरीर, भव्य शरीर
SR No.004437
Book TitleAcharang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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