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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-2-0-0 // 37 शोक, भय, जुगुप्सा, नरक एवं तिर्यंच गति, एकेंद्रिय एवं पंचेंद्रिय जाति, औदारिक एवं वैक्रिय शरीर तथा अंगोपांग द्वय... तैजस, कार्मण, हुंडक संस्थान, सेवार्त्त (छेवटुं) संघयण, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, नरक एवं तिर्यंच आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, श्वासोच्छ्वास, आतप, उद्योत, अशुभ विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयश:कीर्ति, निर्माण एवं नीचगोत्र इन 43 उत्तर कर्म प्रकृतियां की उत्कृष्ट स्थिति 20 कोडाकोडी सागरोपम... तथा पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति एवं देव आनुपूर्वी दोनों, समचतुरस्र संस्थान, व्रजऋषभनाराच संघयण, शुभ विहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यश:कीर्ति, एवं उच्चगोत्र स्वरूप पंद्रह (15) उत्तर कर्म प्रकृतियां की उत्कृष्ट स्थिति 10 कोडाकोडी, तथा न्यग्रोध संस्थान तथा ऋषभ नाराच संघयण की 12 कोडाकोडी, तथा सादिसंस्थान, नाराच संघयण की 14 कोडाकोडी, तथा कुब्जसंस्थान, अर्धनाराचसंघयण की 16 कोडाकोडी, तथा वामन संस्थान, कीलिकासंघयण तथा विकलेंद्रिय याने बेइंद्रिय तेइंद्रिय और चउरिंद्रयजाति... सूक्ष्म, अपर्याप्त, और साधारण... इन आठ उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति 18 कोडाकोडी सागर... ___आहारक शरीर और अंगोपांग तथा तीर्थंकर नामकर्म, इन तीन कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति अंत:कोडाकोडी सागर एवं अबाधाकाल अंतर्मुहूर्त काल है... देव एवं नरक आयुष्य की स्थिति 33 सागरोपम और मनुष्य तथा तिर्यंच आयुष्य की उत्कृष्ट स्थिति 3 पल्योपम और अबाधाकाल पूर्वक्रोडवर्ष का तीसरा भाग... इस प्रकार यहां उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थितिबंध कही, . अब उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थितिबंध कहतें हैं... मति आदि पांच ज्ञानावरण, चक्षु आदि चार दर्शनावरण, संज्वलन लोभ तथा दानादि पांच अंतरायकर्म, इन पंद्रह (15) कर्मों की जघन्य स्थितिबंध अंतमुहूर्त है और अबाधाकाल भी अंतर्मुहूर्त है... पांच निद्रा, असाता वेदनीय, इन छह (6) कर्मो की जघन्य स्थितिबंध- पल्योपम के असंख्येय भाग न्यून 3/7 सागरोपम... साता वेदनीय के बारह (12) मुहूर्त एवं अबाधा अंतर्मुहूर्त... मिथ्यात्व मोहनीय की जघन्य स्थिति पल्योपम के संख्येयभाग न्यून एक सागरोपम... अनंतानुबंधि अप्रत्याख्यानीय एवं प्रत्याख्यानीय क्रोधादि बारह (12) कषाय की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्येय भाग न्यून 4/7 सागरोपम... तथा संज्वलन क्रोध की दो महिने, संज्वलन मान की एक महिना, संज्वलन माया की आधा महिना (एक पक्ष) तथा पुरुषवेद की आठ वर्ष, और इन सभी कर्मों की अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्तकाल है... .. अब शेष नोकषाय (पुरुषवेद के बिना आठ) तथा मनुष्य एवं तिर्यंच गति, पंचेंद्रिय जाति, औदारिक शरीर एवं अंगोपांग, तैजस, कार्मणशरीर, 6 संस्थान तथा 6 संघयण, वर्ण,
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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