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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका ॥१-२-0-0卐 करता है... उनमें दर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं... 1. मिथ्यात्वमोहनीय, 2. मिश्रमोहनीय, 3. सम्यक्त्वमोहनीय... तथा चारित्र मोहनीय के 25 भेद है... 16 कषाय और नव (9) नोकषाय... उनमें शब्दादि पांच कामगुण चारित्रमोह है, और इस चारित्रमोह का हि इस सूत्र में अधिकार है... क्योंकि- यहां कषायों का स्थान प्रस्तुत है, और वह शब्दादि पांच कामगुण स्वरूप है... यह गाथार्थ है... ___ चारित्र मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, और लोभ के आश्रित कामगुण के आधार में कषाय रहते हैं... और संसार का तथा कर्म का मुख्य कारण भी कषाय हि है यह बात अब कहतें हैं... नि. 180 संसार का मूल कर्म है, और उसका भी मूल कषाय है यह कषाय आत्मा में स्वजन, कुटुंब, चाकर आदि कारणों से उत्पन्न होते हैं... नारक, तिर्यंच, मनुष्य एवं देवगति स्वरूप संसार का मूल कारण आठ प्रकार के कर्म है, और उन कर्मो का कारण क्रोध आदि कषाय हैं, और उन क्रोधादि कषायों का कारण शब्दादि विषय हैं, अब इन शब्दादि विषयों के भी अनेक स्थान हैं, अतः उनका प्रतिपादन - कथन करते हैं... मात-पितादि तथा सासु-श्वसुरादि स्वजन-कुटुंब, चाकर सेवक आदि एवं धन, धान्य, कुप्य, वास्तु (मकान), एवं रत्न, सुवर्ण आदि तथा आदि पद से मित्र आदि परिचित लोगों के कारण से प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की तरह, आत्मा में कषाय रहे हुए है... इसी प्रकार एकेंद्रिय जीवों में भी कषाय रहे हुए हैं... यह गाथार्थ है... .. इस प्रकार कषाय-स्थान कहने के द्वारा सूत्र के पदो में कहे गये स्थान पद को कहकर, अब मूलसूत्र के पदों में ग्रहण कीये हुए, जेतव्य याने जितने योग्य ऐसे उन अधिकृत कषायों के निक्षेप कहतें हैं... नि. 181 वे इस प्रकार कषाय-पद के आढ निक्षेप होतें है. नाम, स्थापना, उत्पत्ति, प्रत्यय, आदेश, रस और भावकषाय = आठ निक्षेप... नाम कषाय = इच्छा-मात्र से रखा हुआ, अर्थ से निरपेक्ष अभिधान मात्र हो वह नाम-कषाय निक्षेप... स्थापना कषाय = सद्भाव और असद्भाव स्वरूप प्रतिमा-छबी एवं पाषाण अक्ष आदि... स्थापना निक्षेप है... वह प्रतिमा-चित्र इस प्रकार हो- भयानक भ्रूकुटी, उत्कट ललाट (कपाल) में त्रिशूल, लाल मुख और आंखे, थरथरते हुए होठ पे दांत भीसे
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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