________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 479 172 देवकुरु सुसमसुसमा सिद्धी निब्भयण दुगादिया चेव / कला भोअणुज्जु वंके जीवमजीवे य भावंमि / / 173 मूले छक्कं दवे ओदइउवएसआइमूलं च। खित्ते काले मूलं भावे मूलं भवे तिविहं // 174 ओदइयं उवदिट्ठा आइ तिगं भाव मूलं ओदइअं। आयरिओ उवदिट्ठा विणयकसायादिओ आई॥ 175. नामंठवणादविए खित्तद्धा उड्ढ उवरई वसही। संजम पग्गह जोहे अयल गणण संधणा भावे // 176 पंचसु कामंगुणेसु य सद्दप्फरिसरसरूवगंधेसुं। जस्स कसाया वटुंति मूलट्ठाणं तु संसारे // 177 जह सव्वपायवाणं भूमीए पइट्ठियाई मूलाइं। इय कम्मपायवाणं संसारपट्ठिया मूला // 178 अट्ठविहकम्मरुक्खा सव्वे ते मोहणिज्जमूलागा। कामगुणमूलगं वा तम्मूलागं च संसारो / 179 दुविहो अ होइ मोहो दसणमोहो चरित्तमोहो अ। कामा चरित्तमोहो तेणहिगारो इहं सुत्ते / / 180 संसारस्स उ मूलं कम्मं तस्सवि हुंति य कसाया। ते सयणपेसअत्थाइएसु अज्झत्थओ अ ठिआ /