________________ 478 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्री आचाराशे प्रथमश्रुतस्कन्धस्य नियुक्तिः 163 (अध्ययन-२) सयणे य अदढत्तं बीयगंमि माणो अ अत्थसारो अ। भोगेसु लोगनिस्साइ लोगे अममिजया चेव // 164 लोगस्य य विजयस्स य गुणस्स मूलस्स तह य ठाणस्स। निक्लेवो कायव्वो जंमूलागं च संसारो॥ 165 लोगोत्ति य विजअत्ति य अज्झयणे लक्खणं तु निप्फण्णं। गुणमूलं ठाणंति य सुत्तालावे य निप्फण्णं // 166 लोगस्स य निक्खेवो अट्ठविहो छविहो उ विजयस्स। भावे कसायलोगो अहिगारो तस्स विजएणं // 167 लोगो भणिओ दव्वं खित्तं कालो अ भावविजओ अ। भव लोगो भावविजओ पगयं जह बज्झई लोगो / 168 विजिओ कसायलोगो सेयं खु तओ नियत्तिउं होइ। कामनियत्तमई खलु संसारा मुच्चई खिप्पं // 169 दव्वे खित्ते काले फल पज्जव गणण करण अब्भासे / गुणगुणे अगुणगुणे भव सीलगुणे य भावगुणे॥ 170 दव्वगुणो दव्वं चिय गुणाण जं तंमि संभवो होइ। सन्धिते अप्यिते मीसंमि य होइ दव्वंमि / / 171 संकुचियवियसियत्तं एसो जीवस्स होइ जीवगुणो। पूरेइ हंदि लोगं बहुप्पएसत्तणगुणेणं / /