________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका #1-5-6-7(185) 475 V * सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में पूर्व सूत्र में विस्तार से कही गई बात को संक्षेप में कहा है। और यह बताया है कि- वस्तु के इतने ही भेद होते है। शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श के अतिरिक्त वस्तु का कोई भेद नहीं होता। अत: इनके आधार पर वस्तु का वर्णन किया जाता है और मुक्तात्मा में इन सभी का अभाव है; अत: उसका शब्दादि के द्वारा वर्णन नहीं किया जा सकता। सर्वज्ञ पुरुष को मुक्तात्मा प्रत्यक्ष हि हैं; परन्तु उस आत्मानुभव को पूर्णतया व्यक्त करना शक्य नहि है, क्योंकि- अभिव्यक्ति का साधन शब्द है और शब्द में मोक्षका विवेचन करने की शक्ति नहीं है। अत: मोक्षका अनुभव निरावरण स्थिति को प्राप्त करके ही किया जा सकता है। 'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् समझें। // इति पञ्चमाध्ययने षष्ठः उद्देशकः समाप्तः // // इति लोकसाराभिधं पञ्चममध्ययनं समाप्तम् // 勇勇馬 राजेन्द्र सुबोधनी “आहोरी" हिन्दी-टीकायाः लेखन-कर्ता ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजित् “श्रमण" : प्रशस्ति : सुधर्मस्वामिनः पट्टे भोः ! षट्षष्टितमे शुभे। सुधर्मस्वामी श्रीमद् विजयराजेन्द्र - सूरीश्वरः समभवत् // 1 // राजेन्द्रसूरि विद्वद्वर्योऽस्ति तच्छिष्यः श्रीयतीन्द्रसूरीश्वरः / "श्रमण" "श्रमण" इत्युपनाम्नाऽस्ति तच्छिष्यश्च जयप्रभः // 2 // जयप्रभः "दादावाडी"ति सुस्थाने जावरा-नगरेऽन्यदा / दादावाडी स्फुरितं चेतसि श्रेयस्करं आगमचिन्तनम् // 3 // जावरा. म.प्र. "हिन्दी"ति राष्ट्र भाषायां सटीकश्चेत् जिनागमः / राष्ट्रभाषा लभ्यते क्रियते वा चेत् तदा स्यादुपकारकः // 4 // “हिन्दी" साम्प्रतकालीनाः जीवाः दुःषमारानुभावतः / मन्दमेधाविनः सन्ति तथाऽपि मुक्तिकाक्षिणः // 5 // अतस्तदुपकाराय देवगुरुप्रसादतः ।मोहनखेडा-तीर्थ मोहनखेटके तीर्थे विजया-दशमी-दिने // 6 // आसो सुद-१०