________________ // 1-2-0-05 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन श्रीमद् विजय राजेन्द्र-सूरीश्वरान् नमाम्यहम् यै अभिधानराजेन्द्र - कोषः व्यरचि हर्षतः // 2 // भवाब्धितारकान् वन्दे श्रीयतीन्द्रसूरीश्वरान् / तथा च कविगुणाढ्यान् विद्याचन्द्रसूरीश्वरान् गच्छाधिनायकान् नौमि श्रीहेमेन्द्रसूरीश्वरान् येषां शुभाशिषा कार्यं सुगमं सुन्दरं भवेत् // 4 // गुरुबन्धु श्री सौभाग्य-विजयादि-सुयोगतः हितेश-दिव्यचन्द्राणां शिष्याणां सहयोगतः जयप्रभाऽभिधः सोऽहं श्रीराजेन्द्रसुबोधनीम् आहोरीत्यभिधां कुर्वे टीका बालावबोधिनीम् // 6 // युग्मम् शीलांकाचार्य वृत्ति नमः श्री वर्धमानाय वर्धमानाय पर्ययै : उक्ताचार प्रपञ्चाय निष्प्रपञ्चाय तायिने पर्ययैः वर्धमानाय नये नये ज्ञान पर्यायों से बढते हुए.... उक्ताचारप्रपञ्चाय ____ = आचार का विस्तृत वर्णन करने वाले निष्प्रपञ्चाय प्रपंच = कपट रहित तायिने - धर्मोपदेश के द्वारा जीवों की रक्षा करनेवाले श्री वर्धमानाय नमः = श्री वर्धमान स्वामीजी को नमस्कार हो... शस्त्रपरिज्ञा - विवरणमतिगहनमितीव किल वृत्तं पूज्यैः। श्री गन्धहस्तिमित्रैर्विवृणोमि ततोऽहमवशिष्टम् // 2 // पू. आचार्य श्री गंधहस्ति सूरीजी ने शस्त्रपरिज्ञा का अतिगहन विवरण कीया है... अब जो अवशिष्ट है, वह सुगम टीका मैं (शीलांकाचार्य) लिखता हुं... अर्थात् सुगम विवरण लिखता हुं... "आहोरी" हिन्दी टीका प्रथम अध्ययन पूर्ण हुआ, अब द्वितीय अध्ययन का प्रारंभ करते हैं... इनमें परस्पर यह संबंध है... इस संपूर्ण विश्व में मिथ्यात्व मोह के उपशम क्षय या क्षयोपशम से प्राप्त सम्यग्दर्शन एवं ज्ञान के कार्य स्वरूप, सदा काल एकान्त रूप से अनाबाध परमानंद स्वतत्त्व का सुख एवं निर्मल ज्ञान-दर्शन लक्षणवाले मोक्ष के कारण स्वरूप, आश्रव के निरोध के साथ निर्जरा स्वरूप, मूलगुण एवं उत्तरगुण भेद स्वरूप एवं अन्य सभी व्रत-नियमो को.सफल होने के लिये मूलकारण स्वरूप तथा सकल प्राणीओं को संघट्टन, परितापन, एवं अपद्रावण (वध) की निवृत्ति स्वरूप सम्यकचारित्र है...