________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 5 - 0 - 0 365 अनन्यमनस्क याने एकाग्रता से-दृढता से मुमुक्षु मुनी लीन रहें... तथा अन्य मतों के दम्भाचरणों से क्षुब्ध न होवें... अब शंका को दूर करने के लिये आलंबन दिखाते हैं जैसे कि- जीव है, क्योंकिनव तत्त्व में जीव पद का ग्रहण सभी से पहले कीया है, तथा सभी तत्त्वो में जीव हि प्रधान है... तथा जीव पद कहने से शेष अजीवादि पदार्थ भी ग्रहण करें... जीव भूतकाल में जीवित था, वर्तमानकाल में जीवित है, और भविष्यत्काल में जीवित रहेगा... वह जीव... शुभ एवं अशुभ कर्म फलों का भोक्ता है... और वह प्रत्यक्ष हि “अहं' प्रत्यय से साध्य है... अथवा इच्छा द्वेष प्रयत्न आदि कार्यों के अनुमान से भी वह जीव साध्य है... तथा अजीव भी धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय एवं पुद्गल स्वरूप है... उनमें धर्मास्तिकाय गति में हेतु होता है, अधर्मास्तिकाय स्थिति में हेतु होता है, तथा आकाशास्तिकाय अवगाह (अवकाश) में हेतु होता है और पुद्गल (परमाणु) द्वयणुक त्र्यणुक आदि स्कंधों में हेतु होता है... इसी प्रकार आश्रव, संवर, बंध, निर्जरा भी जानीयेगा तथा मोक्ष-पुरुषार्थ हि प्रधान पुरुषार्थ होने से और आदि एवं अंत का ग्रहण करने से मध्य का ग्रहण अवश्य हो हि जाता है इसलिये पहले साक्षात् “जीव" पद को ग्रहण करने के बाद अब अंतिम पद "मोक्ष'' का कथन करते हैं... परम-पद याने "मोक्ष' है... "मोक्ष है" क्योंकि- “मोक्ष' यह शुद्ध पद है... तथा बंध प्रतिपक्षवाला है, अथवा अविनाभाव याने मोक्ष के होने पर हि बंध का होना है, और मोक्ष के न होने में बंध का भी होना न होना हो जाता है... तथा मोक्ष होने पर भी यदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय न हो तो भी लोग क्या करें ? अत: मोक्ष प्राप्ति के उपाय = कारणो का “होना” दिखाते हैं... यतना याने "जयणा" संयम में प्रयत्न... तथा राग और द्वेष का उपशम... यह मोक्ष का उपाय है... इस प्रकार जीव एवं परमपद याने मोक्षके होने में जो कुछ संशय एवं शंका हो, उनको दूर करके ज्ञानादि “सार” पद को हि दृढता से ग्रहण करें... अब अन्य भी अपर-अपर सार-प्रकर्ष होते हैं वह कहते हैं... नि. 244 जैसे कि- चौदह राजलोक का सार क्या है ? तथा उस सार का भी सार क्या है ? और उसका भी जो सार है, उसको यदि हे गुरुजी ! आप जानते हो तो मुझे कहीयेगा... नि. 245 संपूर्ण लोक का सार धर्म है... तथा धर्म का सार ज्ञान है तथा ज्ञान का सार संयम है और संयम का सार निर्वाण याने मोक्ष है...