________________ 362 // 1 - 5 - 0 - 0 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन याने गुणनिष्पन्न नाम... इन दोनों प्रकार के नाम का स्वरूप नियुक्तिकार स्वयं कहतें हैं... नि. 239 आदान याने प्रथम पदसे पहचाना जाए वह आदानपद... यहां प्रथम सूत्र का प्रथम पद “आवंती' है... यह आदानपद नाम... तथा गुणसे निष्पन्न जो नाम वह गौण नाम... जैसे कि- लोक याने चौदह राजलोक का जो सार याने परमार्थ वह लोकसार नाम गुणनिष्पन्न है... इस लोकसार नाम में दो पद हैं; लोक और सार... अब लोक और सार पद के चार चार निक्षेप कहते हैं... नामलोक, स्थापनालोक, द्रव्यलोक, भावलोक... तथा नामसार, स्थापनासार, द्रव्यसार और भावसार... वहां नामलोक याने; जिस किसी पदार्थ का "लोक" ऐसा नाम हो... तथा स्थापना लोक याने चौदहराजलोक स्वरूप लोक की स्थापना... . वह इस प्रकार... तिर्यग दो मेंचार. दो में छह, तीन में आठ, तीन में दश. दो में बारह, दो में सोलह, चार में बीस, दो में सोलह, दो में बारह, एक में दश, एक में आठ, दो में छह, दो में चार, तथा मध्यलोक से नीचे अधोलोक में चार नरक भूमी पर्यंत चारचार, उसके बाद तीन, तीन, दो दो, एक एक खंडुक-प्रतर सातवी नरक पर्यंत खंडुक के जानीयेगा... प्रतर खंडुक खंडुक 4 --- - < < < < '. m m or on x 5 w ova ora a a a ... 12 --- mms MM