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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका म 1 - 5 - 0 - 0 361 अथ आचाराङ्गसूत्रे प्रथमश्रुतस्कन्धे पञ्चममध्ययनम् # लोकसारः // चौथा अध्ययन पूर्ण हुआ, अब पांचवे अध्ययन का प्रारंभ करतें हैं... यहां परस्पर यह संबंध है कि- चौथे अध्ययन में सम्यक्त्व का स्वरूप कहा, और सम्यक्त्व के अंतर्गत ज्ञान का स्वरूप कहा... अब इन दोनों का फल चारित्र है... तथा चारित्र हि मोक्ष का प्रधान अंग होने के कारण से लोक में सार स्वरूप है, अत: उस चारित्र का स्वरूप कहने के लिये इस लोकसार अध्ययन का प्रारंभ करतें हैं... यहां उपक्रम आदि चार अनुयोग द्वार होते हैं, वहां उपक्रमद्वार में अधिकार दो प्रकार से है... 1. अध्ययानार्थाधिकार, 2. उद्देशार्थाधिकार... नि. 236, 237, 238 अध्ययनार्थाधिकार तो हम पहले कह चूके हैं; अत: यहां उद्देशार्थाधिकार नियुक्तिकार स्वयं हि कहते हैं... हिंसा करनेवाला हिंसक... विषयों का आरंभ करनेवाला विषयारंभक... तथा मात्र विषय भोगोपभोगों के लिये प्रयत्न करनेवाला वह एकचर... इत्यादि ऐसे लोग कभी भी मुमुक्षु मुनी नहि होतें... यह प्रथम उद्देशक का अर्थाधिकार है... तथा द्वितीय उद्देशक में यह अधिकार है कि- मुनी हिंसादि पापस्थानकों से विरत होता है... जब कि- अविरतवादी याने अविरति का कथन करनेवाला मनुष्य परिग्रहवाला होता है... तथा तृतीय उद्देशक में विरति का कथन करनेवाला मुनी हि कामभोगों से निर्वेद पाकर अपरिग्रही होता है वह यहां अर्थाधिकार है.... तथा चौथे उद्देशक में यह अर्थाधिकार है कि- अव्यक्त याने अगीतार्थ तथा सूत्रार्थ से अपरिपूर्ण मुनी को अपाय (उपद्रव) होने की संभावना हैं... तथा पांचवे उद्देशक में द्रह की उपमा से साधु को भावित होना चाहिये... जैसे किजल से भरा हुआ द्रह याने सरोवर बिना छिद्र का हो तो हि प्रशंसनीय होता है... इसी प्रकार साधु भी ज्ञान, दर्शन, एवं चारित्र से भरपूर होने के साथ-साथ विस्रोतसिकावाला न हो; तब हि प्रशंसनीय होता है तथा तपश्चर्या संयम एवं गुप्तियां और असंगत्व इत्यादि यहां अर्थाधिकार है... तथा छठे उद्देशक में उन्मार्ग का त्याग, कुदृष्टि का परित्याग एवं राग-द्वेष का त्याग इत्यादि अर्थाधिकार है... तथा नामनिष्पन्न निक्षेप में नाम के दो प्रकार है... 1. आदानपद नाम तथा 2. गौण
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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