________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 4 - 1 (150) 351 उत्तर- संसारी आत्मा को संयमानुष्ठान दुष्कर है... दुरनुचर है... बहोत हि कठिनाइ से संयमानुष्ठान पाला जा शकता है... सूत्र-सिद्धांत में भी कहा है कि- अनिवर्त्त याने मोक्ष में गमनशील, मुमुक्ष, अप्रमत्त, वीर मुनीओं को भी संयमानुष्ठान दुष्कर है... इसलिये बार-बार उपदेश देते हैं कि- हे जीव ! विकृष्ट याने उग्र तपश्चर्या एवं संयमानुष्ठान से शरीर में उन्माद करनेवाले मांस एवं शोणित (लोही) का विवेक याने शोषण करें... जो मुनी ऐसे हैं, वे निम्नोक्त गुणों को प्राप्त करतें हैं... 1. द्रव याने संयम को प्राप्त करता है... 2. द्रव्यभूत याने मोक्ष में जाने के लिये योग्य होता है... 3. वीर याने कर्म-रिपुओं के विदारण में समर्थ होता है... तथा मांस एवं शोणित के अपचय से शरीर के मेद आदि का भी अपचय जानीयेगा... अत: वीर पुरुषों के मार्ग को प्राप्त, मांस एवं शोणित का अपचय करनेवाला मुमुक्षु हि आदेय वचनवाला होता है... और संयमाचरण स्वरूप ब्रह्मचर्य में रहनेवाला वह साधु तपश्चर्यादि से शरीर अथवा कर्मो का धूनन करता है, अर्थात् निर्जरा के द्वारा कर्मो को दुर्बल करता है... ___इस प्रकार यहां अप्रमत्तं का स्वरूप कहा, अब उनके प्रतिपक्षी प्रमत्त जीवों का स्वरूप कहते हैं... v सूत्रसार : ___ तृतीय उद्देशक में निष्काम तप का वर्णन किया गया है। तप का संयम साधना के साथ सम्बन्ध है। क्योंकि- वह तपश्चर्या भी चारित्र का एक अंग है। इसलिए प्रस्तुत उद्देशक * में संयम-साधना-चारित्र का विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि संयम-साधना का उद्देश्य कर्म क्षय करना है। कर्म क्षय के लिए तपश्चर्या एक अनन्य साधन है। इसलिए मुनि को तप के द्वारा कर्म क्षयं करना चाहिए। यह तप साधना दीक्षा ग्रहण करते ही प्रारंभ होती है... प्रारम्भ में सामान्य रूप से तप करना चाहिए। इससे धीरे-धीरे आत्म शक्ति का विकास होगा। और संयम में तेजस्विता आएगी। अतः साधु को आगमों का अध्ययन करने तक थोड़ी-थोड़ी तपश्चर्या करनी चाहिए। आगम का भली-भांति अनुशीलन-परिशीलन करने के बाद, संयम के परिणामों में परिपक्वता आ जाए तब उसे विशिष्ट तप करना चाहिए। और साधना के पथ पर चलते हुए जब उसे यह निश्चय हो जाए कि- अब शरीर शिथिल हो गया। अब यह शरीर अधिक दिन रहने वाला नहीं है, तब पूर्णतया आहार-पानी का त्याग करके जीवन पर्यन्त के लिए अनशन तप स्वीकार करके शमभाव से समाधि मरण को प्राप्त करे। इस तप के साथ किसी भी प्रकार इस लोक या परलोक सम्बन्धी यश-प्रशंसा एवं भौतिक