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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 3 - 1 (147) // 341 चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताइस, अट्ठाइस, गुनतीस, तीस, इकतीस, नव तथा आठ कर्म स्वरूप नाम कर्म के बारह उदयस्थान हैं... उनमेंसे सयोगी संसारी जीवों को दश उदयस्थान होतें हैं और अयोगी केवलज्ञानीओं को अंतिम के दो उदयस्थान होते हैं... यहां नाम कर्म की ध्रुवोदयवाली बारह कर्म प्रकृतियां इस प्रकार हैं... 1. तैजस शरीर, 2. कार्मण शरीर, 3. वर्ण, 4. गंध, 5. रस, 6. स्पर्श, 7. अगुरुलघु, 8. स्थिर, 9. अस्थिर, 10. शुभ, 11. अशुभ एवं 12. निर्माण नामकर्म... ___समुद्घात की प्रक्रिया में कार्मणशरीरवाले सामान्य केवलज्ञानी को बीस (20) कर्म प्रकृतियां इस प्रकार होती हैं... 1. मनुष्यगति, 2. पंचेंद्रियजाति, 3. त्रस, 4. बादर, 5. पर्याप्त, 6. सुभग, 7. आदेय, 8. यश:कीर्ति, तथा बारह (12) ध्रुवोदयी कर्म को मीलाने से बीस (20) कर्मवाला यह पहला उदयस्थान है... तथा एकवीस (21) से लेकर इकतीस (31) पर्यंतके नव (9) उदयस्थान जीव एवं गुणस्थानक के भेद से अनेक भेद-विकल्पवाले होते हैं... किंतु ग्रंथ का प्रमाण बढ जाने के कारण से उन सभी के होनेवाले अनेक भेद को नहिं कहतें हैं, तो भी उनके एक-एक भेद को यहां कहते हैं... वे इस प्रकार- इक्कीस (21) कर्म- 1. गति, 2. जाति, 3. आनुपूर्वी, 4. त्रस, 5. बादर, 6. पर्याप्त या अपर्याप्त, 7. सुभग या दुर्भग, 8. आदेय या अनादेय.. 9. यश:कीर्ति या अयश:कीर्ति, यह नव एवं बारह ध्रुवोदय, दोनो मीलकर इक्कीस (21) कर्मवाला यह दुसरा उदयस्थान है... तथा चौबीस (24) कर्म- 1. तिर्यंचगति, 2. एकेंद्रियजाति, 3. औदारिक शरीर, 4. हुंडक संस्थान, 5. उपघात, 6. प्रत्येक या साधारण, 7. स्थावर, 8. सूक्ष्म या बादर, 9. दुर्भग, 10. अनादेय, 11. अपर्याप्तक, 12. यश:कीर्ति या अयश:कीर्ति तथा बारह (12) ध्रुवोदयी... कुल मीलाकर चौबीस (24) कर्मवाला यह तीसरा उदयस्थान है... तथा इन चौबीस कर्मो में से अपर्याप्त को न्यून करें एवं पर्याप्तक तथा पराघात का प्रक्षेप करने से पच्चीस (25) कर्मवाला यह चौथा उदयस्थान है... तथा सामान्य केवलज्ञानीओं को जो बीस (20) कर्मवाला उदयस्थान कहा है, उसमें औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, छह में से कोई भी एक संस्थान, पहला संघयण, उपघात एवं प्रत्येक... यह छह (6) कर्म मीलाने से छब्बीस (26) कर्मवाला यह पांचवा उदयस्थान केवली समुद्घात में औदारिक मिश्रयोगवाले सामान्य केवलज्ञानीओं को होता है... .. तथा पूर्वोक्त 26 कर्मो में तीर्थंकर नामकर्म को जोडने से 27 कर्म के उदयवाला यह छट्ठा उदयस्थान तीर्थंकर केवलीओं को केवलीसमुद्घात में औदारिक मिश्र काययोग में
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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