________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 2 - 1 (143) // 319 इत्यादि प्रकार के शुभ आश्रवद्वारों के द्वारा जीव सातावेदनीय कर्म बांधता है... तथा इससे विपरीत याने प्राणीओं के उपर अनुकंपा न करना इत्यादि प्रकार के अशुभ आश्रव-द्वारों से जीव असातावेदनीय कर्म का बंध करता है... तथा अनंतानुबंधी क्रोध आदि विषयों की उत्कटता याने उग्रता से तथा मिथ्यात्व मोहनीय कर्म की तीव्रता से प्रबल चारित्रमोहनीय कर्म के विपाकोदय में जीव मोहनीय कर्म को बांधता है... ___ तथा महा आरंभ, महा परिग्रह तथा पंचेंद्रिय प्राणीओं का वध करके मांस का आहार करनेवाले जीव नरक का आयुष्य बांधता है... तथा मायविता याने कपट-माया से एवं अनृत याने जुठ बोलने के द्वारा तथा जूठे तोल एवं जूठे माप का व्यवहार करने से जीव तिर्यंच गति का आयुष्य बांधता है... तथा प्रकृति से विनयवाले तथा पापों के पश्चाताप करनेवाले जीव मत्सर एवं = ईष्या के अभाव में मनुष्य गति का आयुष्य बांधता है... तथा सरागसंयम से, देशविरति स्वरूप श्रावक जीवन से, बाल तप याने अज्ञानवाली तपश्चर्या से एवं अकामनिर्जरा से जीव देवगति का आयुष्य बांधता है... तथा काया की सरलता से एवं भाव याने मन की सरलता से तथा भाषा याने वाणी की सरलता से तथा अविसंवादी याने परस्पर अविरुद्ध योगों से जीव शुभ नाम कर्म का बंध करता है... तथा इस से विपरीत याने काया की वक्रता से मन की वक्रता से वचन की वक्रता से तथा विसंवादी याने परस्पर विरुद्ध योगों के द्वारा जीव अशुभ नामकर्म का बंध करता है... तथा जाति, कुल, बल, रूप, तपश्चया, श्रुत, लाभ एवं ऐश्वर्य के मद के अभाव में जीव उच्चगोत्र कर्म बांधता है तथा जाति-कुल आदि आठ प्रकार के मद से तथा अन्य जीवों की निंदा = अवर्णवाद करने से जीव नीचगोत्र बांधता है... तथा दान के कार्य में अंतराय करने से एवं लाभ, भोग, उपभोग एवं वीर्य = पुरुषार्थ के कार्यों में भी अंतराय याने विघ्न करने से जीव अंतराय कर्म का बंध करता है... यह सभी आश्रव है... ___ अब परिश्रव कहतें हैं... परिश्रव याने निर्जरा... निर्जरा के बारह भेद हैं; छह अनशनादि बाह्य तपश्चर्या; एवं छह प्रकार की प्रायश्चित आदि अभ्यंतर तपश्चर्या... अनशन अणोदरी वृत्तिसंक्षेप रसत्याग एवं कायक्लेश यह बाह्य तपश्चर्या हैं तथा प्रायश्चित विनय वैयावच्च काउस्सग्ग एवं ध्यान यह छह अभ्यंतर तपश्चर्या हैं... इस प्रकार आश्रववाले एवं निर्जरावाले भेद-प्रभेद के साथ जीवों का स्वरूप कथन करना चाहिये... सभी जीव-अजीव आदि मोक्ष पर्यंत के सात या नव पदार्थों का