SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 4 - 1 - 1 (139) 307 प्रश्न- उपस्थित ऐसे चिलातीपुत्र आदि को कही गइ धर्मकथा युक्तियुक्त सफल हि है; किंतु जो लोग अनुपस्थित हैं, उनको कहने से क्या फल ? उत्तर- अनुपस्थित ऐसे भी इन्द्रनाग आदि लोगों में विचित्र कर्मपरिणाम का क्षयोपशम होने से धर्मोपदेश सफल हि है... तथा प्राणीओं को अथवा अपने खुद आत्मा को हि जो दंड दे, वह दंड... और वह मन वचन एवं काया स्वरूप त्रिविध है... ऐसे त्रिविध दंड से जो लोग उपरत याने निवृत्त है; वे उपरतदंडवाले और जो ऐसे नहि है; वे अनुपरतदंडवाले... इन दोनों में से जो प्राणी उपरतदंडवाले हैं; उन्हें उस में स्थिरता का गुण प्राप्त हो इसलिये उपदेश है... तथा जो प्राणी अनुपरतदंडवाले हैं, वे उपरतदंडवाले हो, इसके लिये उन्हे भी यह उपदेश है... उपधि याने जिसका संग्रह हो शके वह... उस उपधि के द्रव्य एवं भाव के भेद से दो प्रकार हैं... द्रव्य से उपधि सुवर्ण आदि तथा भाव से उपधि माया (कपट) अतः जो प्राणी उपधि के साथ हैं वे सोपधिक, तथा जो प्राणी उपधि से रहित हैं वे अनुपधिक हैं तथा संयोग याने पुत्र, स्त्री, मित्र आदि से होनेवाला संयोग... ऐसे संयोग में जो प्राणी रत हैं वे संयोगरत... तथा जो प्राणी इनसे विपरीत हैं, वे असंयोगरत हैं... उन दोनों प्रकार के जीवों को परमात्मा ने धर्म का उपदेश दीया है.... ___ वह धर्म तथ्य है, अर्थात् सत्य है... तथ्यता याने परमात्मा ने वस्तु का स्वरूप जैसा कहा है वैसे हि वे वस्तु-पदार्थ हैं... तथ्यता वचन में होती है, अत: वाच्य पदार्थ का स्वरूप कहनेवाला धर्म तथ्य हि है... जैसे कि- परमात्माने कहा कि- सभी प्राणीओं को मारना नहि चाहिये... इत्यादि इस प्रकार सम्यग्दर्शन स्वरूप श्रद्धा करनी चाहिये... इत्यादि यह बात मोक्षमार्ग को बतानेवाले तथा सभी दंभ-कपटसे रहित ऐसे जिनेश्वर परमात्मा प्रवचन-देशना में कहते हैं... किंतु अन्य कुमत के शास्त्रों में कहे गये परस्पर (आगे-पीछे) बाधक विधान... जैसे कि- सभी जीवों को मारना नहि चाहिये ऐसा एक जगह कहकर अन्य जगह कहतें हैं कियज्ञ में पशु का वध हो तो उस में कोई दोष नहिं है इत्यादि... पूर्वोत्तर बाधकता जिनप्रवचन में नहि है... इस प्रकार यहां सम्यक्त्व का स्वरूप कहकर अब उस सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर जो करना चाहिये वह बात सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... V. सूत्रसार :
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy