SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 3 - 4 - 3 (138) // 287 प्रश्न- क्या महायान समान चारित्र को प्राप्त करके मनुष्य एक हि भव में मुक्ति को प्राप्त . करता है कि- परंपरा से याने अनेक भवों से... ? उत्तर- दोनों प्रकार से मनुष्य मोक्षपद पाता है... वह इस प्रकार- मोक्ष योग्य क्षेत्र और काल को प्राप्त करके कोइक लघुकर्मवाला मनुष्य उसी एक हि भव में मोक्ष पद प्राप्त करता है... तथा अपर याने जो मनुष्य लघुकर्मवाला नहि है वह अन्यथा याने परंपरा से ' अर्थात् अनेक भवों से मोक्ष पाता है... जैसे कि- सम्यक्त्व से नरक एवं तिर्यंचगति के द्वार को बंध करके सम्यग्ज्ञानके द्वारा यथाशक्ति चारित्र का पालन करनेवाला मनुष्य आयुष्य के क्षय से सौधर्म आदि देवलोक में उत्पन्न होते हैं... वहां से भी शेष पुन्य के अनुसार कर्मभूमी, आर्यक्षेत्र, अच्छे उत्तम कुल में जन्म, तथा आरोग्य, श्रद्धा, धर्मश्रवण एवं संयम आदि को प्राप्त करके विशिष्ट प्रकार के अनुत्तरोपपातिक पर्यंत के स्वर्ग याने देवलोक को प्राप्त करतें हैं... और पुनः वहां से च्यवन पाकर मनुष्य जन्म आदि संयमभाव को प्राप्त करके अशेष याने सभी कर्मो के क्षय से मोक्षपद पाते हैं... इस प्रकार “परेण" याने शास्त्रोक्त विधिवाले संयम के द्वारा “पर” याने स्वर्ग और पारंपर्य याने परंपरा से अपवर्ग याने मोक्ष में भी पहुंचते हैं... अथवा “परेण" याने सम्यग्दृष्टि गुणस्थानक के द्वारा “परं' याने देशविरति से लेकर अयोगि-केवली पर्यंत के गुणस्थानकों में चढते हैं... ___ अथवा “परेण" याने अनंतानुबंधी कषाय के क्षय से उल्लसित हो रहे शुभ अध्यवसाय कंडक स्थानवाले “पर” याने दर्शनमोहनीय एवं चारित्रमोहनीयकर्म का क्षय करके शेष तीन घातिकर्म एवं भवोपग्राही चार अघाति कर्मो का क्षय करतें हैं... इस प्रकार कर्मक्षय के लिये उद्यत मनुष्य-साधु यह नहि सोचता कि- जीवन कितना बीत गया, और कितना शेष है... अर्थात् दीर्घ जीवित याने लंबे आयुष्य की अभिलाषा नहि करतें... अथवा असंयमवाले जीवित को भी नहि चाहतें... ___ अथवा तो “परेण परं यान्ति" याने उत्तरोत्तर तेजोलेश्या को प्राप्त करते हैं... श्री भगवती सूत्र में कहा है कि- हे भगवन् ! जो यह इस काल के श्रमणनिग्रंथ विचरतें हैं, वे किनकी तेजोलेश्या को उल्लंघन करतें हैं ? हे गौतम ! एक महिने के पर्यायवाले श्रमण-निग्रंथ वाणव्यंतर देवों की तेजोलश्या का उल्लंघन करते हैं... इस प्रकार दो महिने के चारित्र पर्यायवाले श्रमण-निग्रंथ असुरेंद्र को छोडकर शेष भवनपति निकाय के देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करते हैं... तीन महिने के पर्यायवाले असुरकुमार देवों को... चार महिने के पर्यायवाले ग्रहनक्षत्र एवं तारा स्वरूप ज्योतिष्क देवों की तेजोलेश्या एवं पांच महिने के पर्यायवाले ज्योतिष्क के इंद्र चंद्र एवं सूर्य आदि ज्योतिष्क देवों की तेजोलेश्या का उल्लंघन करते हैं...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy