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________________ 266 1 - 3 - 3 - 3/4 (128-129) # श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहतें हैं... I सूत्र // 4-5 // // 128-129 // 1-3-3-4/5 अवरेण पुव्विं न सरंति एगे, किमस्स तीयं किं वाऽऽगमिस्सं। भासंति एगे इह माणवाओ, जमस्स तीयं तमागमिस्सं // 128 // नाईयमटुं न य आगमिस्सं, अटुं नियच्छंति तहागया उ। विहुयकप्पे एयाणुपस्सी, निज्झोसयित्ता खवगे महेसी // 129 // संस्कृत-छाया : अपरेण पूर्वं न स्मरन्ति एके, किमस्य अतीतं किं वाऽऽगमिष्यति। भाषन्ते एके इह मानवा, यदस्य अतीतं तद् आगमिष्यति // 128 // नाऽतीतमर्थं न च आगमिष्यत्, अर्थं नियच्छन्ति तथाऽऽगता तु। विधूतकल्पः एतदनुदर्शी, निज्झोषयिता क्षपक: महर्षिः // 129 // III सूत्रार्थ : कितनेक लोग अपर (वर्तमान) के साथ पूर्व एवं पश्चिम काल को याद नहि करतें कि- इसका भूतकाल कैसा था और भविष्यकाल कैसा होगा... किंतु यहां कितनेक मनुष्य कहते हैं कि- जैसा भूतकाल गया वैसा हि भविष्यकाल आयेगा... // 128 // ___ जो सर्वज्ञ हैं वे वस्तु-पदार्थ के भूतकाल एवं भविष्यत्काल के साथ वर्तमान-काल को ग्रहण करतें हैं क्योंकि- वस्तु तो वस्तु हि है उसके मात्र पर्याय हि बीततें हैं और नये पर्याय आते हैं... इस प्रकार कल्पातीत सर्वज्ञ प्रभु क्षपक महर्षी इस तत्त्वदृष्टि से कर्मो का विनाश करतें हैं // 129 // IV टीका-अनुवाद : कितनेक लोग भविष्यत्-काल के साथ पूर्व के भूतकाल को याद नहिं करतें... तथा मोह एवं अज्ञान से आच्छादित मतिवाले अन्य लोग यह नहिं सोचतें कि- इस जीव को भूतकाल में नरक आदि के दु:ख तथा मनुष्य जन्म में बाल्यावस्था कुमारावस्थादि में दुःख आदि हुए तथा भविष्यकाल में सुखाभिलाषी और दुःख के द्वेषी इस जीव को वृद्धावस्था मरण अवस्था एवं जन्मांतर में कौन से दु:ख आयेंगे... ? इत्यादि हां ! यदि भूतकाल एवं भविष्यत्काल का पर्यालोचन = चिंतन करे तो संसार में रति याने राग न हो... कहा भी है
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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