________________ 246 1 -3-2-5 (119) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन m >> 3 ; & (23) कर्मो के बंध का पहला बंधस्थान मिथ्यादृष्टि को होता है... वे तेइस (23) कर्म इस प्रकार हैं... तिर्यंच गति 11. तिर्यंच-आनुपूर्वी 2. एकेंद्रिय गति अगुरुलघु औदारिक शरीर उपघात तैजस शरीर 14. स्थावर कार्मण शरीर बादर या सूक्ष्म हुंडक संस्थान अपर्याप्तक वर्ण 17. प्रत्येक या साधारण 8. गंध 18. अस्थिर 19. अशुभ 10. स्पर्श 20. दुर्भग 21. अनादेय 22. अपयशः 23. निर्माणनाम कर्म... 1. यह तेइस कर्म एकेंद्रिय अपर्याप्तक के प्रायोग्य हैं... // 1 // इन तेइस (23) कर्मप्रकृतियां में पराघात और उच्छ्वास तथा अपर्याप्त के स्थान में पर्याप्तनामकर्म को जोडने से 25 कर्मप्रकृतियों का दुसरा यह बंध स्थान पर्याप्त एकेंद्रिय प्रायोग्य है // 2 // तथा पूर्वोक्त 25 कर्मप्रकृतियां में आतप या उद्योत जोडने से तथा बादर और प्रत्येक नामकर्म के बंध स्वरूप छब्बीस (26) कर्मो का तीसरा बंधस्थान है // 3 // तथा देवगति प्रायोग्य अट्ठाइस (28) कर्मो को बांधनेवालों को चौथा बंधस्थान जानीयेगा... वे इस प्रकार रस 2. देवगति पंचेंद्रिय जाति वैक्रिय शरीर तैजस शरीर कार्मण शरीर समचतुरस्र संस्थान वैक्रिय अंगोपांग 3 15. पराघात उच्छ्वास शुभ विहायोगति 18. त्रस बादर पर्याप्तक प्रत्येक 22. स्थिर या अस्थिर 23. शुभ या अशुभ / ; वर्ण ___ गंध