________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-3 -1-6(114) 233 सुधर्मस्वामी हे जंबू ! तुम्हें कहता हुं... // 114 / / 'IV टीका-अनुवाद : कर्मो के मूल कारण मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय एवं योग हैं, और कर्मो का मूल हिंसा है... अत: प्राणीओं के वध स्वरूप हिंसा को अच्छी तरह से समझकर त्याग करे... अर्थात् जिस समय प्रमाद के कारण से कर्मो का ग्रहण हो, उसी समय सावधान होकर कर्मबंध का निवारण करें... यहां सारांश यह है कि- अज्ञान एवं प्रमाद आदि से जिस समय कर्मबंध के कारण-भूत क्रिया हो जाय, उसी समय सचेतनवाला होकर कर्मबंध के कारण स्वरूप उन अशुभक्रियाओं का त्याग करें... इस प्रकार कर्म का स्वरूप एवं कर्म के विपक्ष ऐसे संवरभाव के उपदेश को ग्रहण करके राग एवं द्वेष से दूर होकर अथवा कर्मबंध के कारणभूत राग आदि को ज्ञ परिज्ञासे जानकर एवं प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग करें... तथा राग आदि से मोहित (मूर्च्छित) लोक समूह को अथवा विषय-कषाय स्वरूप लोक को शास्त्रदृष्टि से जानकर एवं विषयों की पिपासा स्वरूप संज्ञा अथवा तो धन्य-धान्य आदि के ग्रहण के आग्रह स्वरूप संज्ञा का वमन (त्याग) करके वह मेधावी याने धर्मानुष्ठान की मर्यादा में रहा हुआ साधु संयमानुष्ठान में उद्यमवाला होकर विषयपिपासा को अथवा कामक्रोधादि अंतरंग षड् अरिवर्ग को अथवा तो आठों प्रकार के कर्मो का निरोध करें... “इति" पद यहां उद्देशक की परिसमाप्ति का सूचक है, एवं ब्रवीमि याने मैं (सुधर्मस्वामी) हे जंबू ! भगवान् वीर परमात्मा के मुख से जो सुना है वह तुम्हें कहता हुं। v सूत्रसार : कर्म बन्ध के मूल कारण 5 हैं- 1. मिथ्यात्व, २.अव्रत, ३.कषाय, 4. प्रमाद और 5. योग। इनके कारण ही जीव संसार में परिभ्रमण करता है। इस बात को जिनेश्वर भगवान ने अपने उपदेश में स्पष्ट कर दिया है और उससे मुक्त होने का मार्ग भी बताया है। अतः भगवान के उपदेश को हृदयंगम करके मुमुक्षु पुरुष को जिनाज्ञा के अनुरूप आचरण करना चाहिए। संसार के वास्तविक स्वरूप को समझकर राग-द्वेष से निवृत्त होने का प्रयत्न करना चाहिए। राग-द्वेष कर्म बन्ध के बीज हैं। इसलिए मुख्य रूप से इन के त्याग का उपदेश दिया गया है। जो व्यक्ति राग-द्वेष का परित्याग कर देता है, उनका सर्वथा उन्मूलन कर देता है, फिर वह कर्म बन्धन नहिं करता है और परिणाम स्वरूप जन्म-मरण आदि समस्त दु:खों से मुक्त हो जाता है। प्रस्तुत सूत्र में 'अंत' शब्द राग-द्वेष के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अतः बुद्धिमान पुरुष