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________________ 1681 - 2 - 5 - 10 (97) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अब सूत्रकार महर्षि प्रस्तुत विषय का उपसंहार करते हुए आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 10 // // 97 // 1-2-5-10 से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हंता छित्ता भित्ता लुंपइत्ता, विलुंपइत्ता उदृवइत्ता, अकडं करिस्सामि त्ति मण्णमाणे, जस्स वि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारइ बाले, न एवं अणगारस्स जायइ त्ति बेमि // 97 // // संस्कृत-छाया : तस्मात् तत् जानीत, यद् अहं ब्रवीमि, चिकित्सां पण्डितः प्रवदन् सः हन्ता, छेत्ता, भेत्ता लुम्पयिता विलुम्पयिता अपद्रावयिता, अकृतं करिष्यामि इति मन्यमानः यस्य अपि च करोति, अलं बालस्य सङ्गेन, ये वा तस्य कारयंति बालाः, न एवं अनगारस्य जायते इति ब्रवीमि // 97 // III सूत्रार्थ : इसीलिये हे जंबू ! तुम उस बात को जानो कि- जो मैं कहता हुं... चिकित्सा को करता हुआ वह पंडित (साधु) पृथ्वीकाय आदि जीवों का वध करता है, छेदन करता है, भेदन करता है, लुंटता है, विशेष लुंट चलाता है, और प्राणांत कष्ट देता है... तथा “अन्य ने नहिं की हुइ उस चिकित्सा को मैं करूंगा” ऐसा मानता हुआ वह, हिंसात्मक चिकित्सा करता है... अत: अज्ञानीओं के संग से क्या ? जो ऐसा करते हैं वे बाल हैं, अणगार ऐसा नहिं होता इत्यादि... IV टीका-अनुवाद : कामभोग निश्चित हि दु:खों के कारण है, अतः हे जंबू ! कामभोग के त्याग का मैं जो उपदेश देता हुं उसे सुनो, हृदय में रखो ! जो साधु काम की चिकित्सा को अन्य रोगों की चिकित्सा की तरह कहता हुआ जीवों के वध में प्रवृत्त होता है... वह इस प्रकार... वह साधु न होते हुए भी साधु का दिखावा करनेवाला वह मनुष्य तत्त्व को जानता नहि है, अत: काम की चिकित्सा का उपदेश देता हुआ साधु जीवों का वध करता है, कान आदि का छेदन करता है, शूल आदि के द्वारा भेदन करता है, ग्रंथिछेद याने जेब कतरु की तरह लुंटता है, और धाड पाडना, डाका डालना इत्यादि प्रकार से विशेष लुंटता है, तथा प्राण विनाश स्वरूप अपद्रावण = वध करता हैं... क्योंकिपरमार्थ दृष्टि के अभाव में काम चिकित्सा और रोग चिकित्सा पृथ्वीकायादि के वध के बिना संभव हि नहिं है... तथा वह शोचता है कि- जो काम चिकित्सा या व्याधि निकित्सा का
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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