________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-2-5-8 (95) 161 बात अब कहते हैं- कामभोग में आसक्त यह प्राणी कामभोग में या कामभोग के उपायों में लीन होकर बार बार कामभोगों में प्रवृत्त होते हैं, और ऐसे कामभोग के सेवन से पुनः प्राप्त हुए कर्मो से इस संसारचक्र में बार बार परिभ्रमण करते हैं, किंतु कामभोग की अभिलाषा से निवृत्त नहि हो पाते हैं... ऐसे संसारी-प्राणिओं को आयतचक्षु वाले साधु शास्त्रदृष्टि से देखता है... अथवा तो हे शिष्य ! देखो ! कामभोग में आसक्त यह मनुष्य लोक-संसार में बार बार परिभ्रमण करते हैं... इस विश्व में मनुष्यों में ज्ञानादि भावसंधि की संभावना हैं... क्योंकि- चारों गति में मात्र मनुष्य हि संपूर्ण ज्ञानादि प्राप्त कर शकतें हैं, इसलिये मनुष्य शब्द का यहां ग्रहण कीया गया है... अत: इस भावसंधि (ज्ञानादि) को जानकर जो प्राणी विषय एवं कषायों का त्याग करता है वह हि वीर है... यह बात अब कहतें हैं... यह अभी कहे गये आयतचक्षु, लोक के विभिन्न विभागों के यथावस्थित स्वभाव को देखनेवाले तथा भावसंधि को जाननेवाले मुमुक्षुसाधु हि विषयों की तरस का त्याग करके कर्मों का विनाश करने के कारण से वीर कहे गये हैं... और तत्त्वज्ञ पुरुषों ने ऐसे वीरों की हि प्रशंसा की है... ऐसे वीर पुरुष और क्या क्या करतें हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि- संसार में द्रव्य एवं भाव बंधनो से जो जो प्राणी बंधे हुए हैं उन्हें मुक्त करतें हैं... क्योंकि- जो स्वयं मुक्त है वे हि अन्य को मुक्त कर शकतें हैं.. ___अब द्रव्य भाव बंधन एवं मोक्ष का स्वरूप वचन की युक्ति से कहते हैं... जैसे किजिस प्रकार साधु आंतरिक भावबंधन स्वरूप आठ प्रकार के कर्मो की बेडी (केद) से मनुष्यों को मुक्त करते हैं उसी ही प्रकार पुत्र, पत्नी आदि स्वरूप बाह्य बंधन से भी उन्हें साधु मुक्त करतें हैं... अथवा तो जैसे बाह्य बंधु-स्वजनों के बंधन से मुक्त करतें हैं वैसे हि मोक्षगमन में बाधक अंतरंग कर्मो के बंधनों से भी मनुष्य को मुक्त करते हैं.... अथवा तो ऐसे वीर पुरुष तत्त्व को प्रगट करके प्राणीओं को मोह से मुक्त करते हैं... वह इस प्रकार- जैसे कि- अपना शरीर अंदर से अमेध्य याने विष्टा-मलमूत्र तथा मांस, लोही = खून, इत्यादि की दुर्गंध से पूर्ण है, अतः असार है... इसी प्रकार बाह्य सभी पुद्गल पदार्थ भी विनश्वर है अत: वे भी असार हैं... यह शरीर मल-मूत्र एवं अशूचि से भरे हुए घट के समान हि है... यह बात अन्य विद्वानों ने भी कही है जैसे कि- इस शरीर के अंदर के पदार्थ यदि बाहर रहे तब यह मनुष्य इस शरीर के रक्षण के लिये दंड (लकडी) लेकर कत्ते एवं कौवों आदि को दूर करने में लगे रहें... इत्यादि... ___अथवा यह शरीर जैसा बाहर असार है, वैसा हि अंदर भी असार है... और देह के अंदर अंदर रहे हुए मांस, लोही (खून), मेद, मज्जा इत्यादि दूर्गंधवाले देह के अवयवों