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________________ 144 // 1-2-5-3 (90) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन सूत्र // 3 // // 90 // 1-2-5-3 अदिस्समाणे कयविक्कयेसु, से न किणे न किणावए, किणंतं वा न समणुजाणइ, से भिक्खू कालण्णे, बलण्णे, मायण्णे, खेयण्णे, खणयण्णे, विणयण्णे, ससमयपर समयण्णे, भावण्णे परिग्गहं अममायमाणे कालाणुट्ठाई अपडिण्णे // 90 // // संस्कृत-छाया : अदृश्यमानः क्रय-विक्रययोः, स: न क्रीणीयात्, न क्रापयेत्, क्रीणन्तं न समनुजानीयात्, स: भिक्षुः कालज्ञः बलज्ञः मात्राज्ञः खेदज्ञः (क्षेत्रज्ञः) क्षणकज्ञः विनयज्ञः स्वसमयपरसमयज्ञः, भावज्ञः, परिग्रहं अममीकुर्वाण: कालानुष्ठायी अप्रतिज्ञः // 90 // III सूत्रार्थ : क्रय एवं विक्रय को नहिं देखने (चाहने) वाला वह साधु कुछ भी खरीद (क्रय) न करे, न तो खरीद (क्रय) करवाये, और खरीदी (क्रय) करनेवाले अन्य की अनुमोदना न करे... वह साधु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रा-ज्ञ है, खेद-ज्ञ है अथवा क्षेत्रज्ञ है, क्षणकज्ञ है, विनयज्ञ है तथा स्वसिद्धांत (शास्त्र) और पर सिद्धांत को जाननेवाला है, और भावज्ञ है... परिग्रह के प्रति ममता न करनेवाला है, अतः कालानुष्ठायी वह साधु अप्रतिज्ञ हि है. // 90 // IV टीका-अनुवाद : साधु क्रय एवं विक्रय को देखता नहि है, क्योंकि- साधु अकिंचन है अतः क्रय एवं विक्रय के कारण धन हि उनके पास नहि है अतः साधु क्रीतकृत आहार आदि का उपभोग नहिं करतें, वह अकिंचन साधु धर्म के उपकरणों को भी स्वयं खरीदे नहिं, तथा अन्य के द्वारा क्रय (खरीदी) न करवाये, एवं खरीदी करनेवाले अन्य की अनुमोदना न करें... अथवा निरामगंध पद में आम शब्द से हनन कोटि त्रिक, गंध शब्द से पचन कोटि त्रिक, तथा क्रयणकोटित्रिक का स्वरूप से हि ग्रहण होता है, अत: नवकोटि से परिशुद्ध आहार का अंगार और धूम दोष न लगे उस प्रकार आहार (भोजन) करे... ऐसे गुणवाले साधु और कैसे होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि- वह भिक्षु = साधु कर्त्तव्य के अवसर को जानने स्वरूप काल को जानता है अतः विदितवेद्य कालज्ञ है... तथा बलज्ञ याने बल = शरीरबल को जानकर अपने सामर्थ्य के अनुसार यथाशक्ति धर्मानुष्ठान करता है, अर्थात् अपने बल एवं वीर्य-पराक्रम को छुपाता नहि है... मात्राज्ञ = जितने द्रव्यों जितनी मात्रा = प्रमाण चाहिये उस मात्रा को जाननेवाला...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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