________________ 78 1 -2-1 - 9 (71) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन V अभाव में सम्यक्त्व आदि के प्राप्ति का अवसर... क्योंकि- आलस्य आदि दोषों के कारण से प्राणी संसार समुद्र को पार होने में समर्थ मनुष्य जन्म पाकर भी सम्यग्दर्शन आदि आत्मगुणो को प्राप्त नहिं कर शकता है... कहा भी है कि- आलस्य, मोह, अवज्ञा, अभिमान, क्रोध, प्रमाद, कंजुसाइ, भय, शोक, अज्ञान, विक्षेप, कुतूहल, कामक्रीडा इत्यादि कारणों से जीव दुर्लभ ऐसा मनुष्य जन्म पाकर भी संसार से पार करनेवाली हितकारी श्रुति = धर्मकथा का श्रवण प्राप्त नहिं करतें... इस प्रकार चार प्रकार का क्षण कहा... उसका सारांश यह है किजंगमत्व याने त्रसत्व आदि विशिष्ट मनुष्य जन्म यह द्रव्यक्षण है, तथा आर्यदेश आदि क्षेत्रक्षण है, तथा धर्मानुष्ठान के आचरण का काल यह कालक्षण है और क्षयोपशम आदि भाव यह भावक्षण है... इस प्रकार चारों प्रकार के क्षण = अवसर को प्राप्त करके आत्महित के लिये आत्मा को स्थापित करें... यह बात अब इस उद्देशक के अंतिम सूत्र से सूत्रकार महर्षि कहेंगे... सूत्रसार : समय की गति बड़ी तेज है। बीता हुआ समय कभी भी लौटकर नहीं लाया जा सकता। इसीलिए आगम में कहा गया है कि- द्रुतगति से भागने वाले समय को जानकर साधक को शास्त्रदृष्टि से सम्यक्तया उसे सफल बनाने में सदा सावधान रहना चाहिए। क्योंकि- ऐसा सुअवसर बार-बार मिलना कठिन है। 'क्षण' शब्द का अर्थ है-अवसर या समय। वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से चार प्रकार का है। मनुष्य जन्म, स्वस्थ शरीर, सशक्त. इन्द्रियें आदि की प्राप्ति द्रव्य क्षण है। आर्यक्षेत्र, की प्राप्ति क्षेत्र क्षण है। उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के वे आरे कि- जहां धर्म की साधना की जा सके-जैसे कि- अवसर्पिणी काल का तृतीय, चतुर्थ और पंचम आरा तथा महाविदेह क्षेत्र का सभी काल, काल क्षण है। क्षयोपशम आदि भाव की प्राप्ति भाव क्षण है। ___ कहने का तात्पर्य यह है कि- धर्म साधना में सहायक साधन क्षण है और ऐसे क्षणसमय को प्राप्त करके साधक को साधना में प्रमाद नहीं करना चाहिए। क्योंकि- समय को जानने वाला व्यक्ति ही पंडित है। अत: साधक को चाहिए की प्राप्त क्षणों को प्रमाद में नष्ट न करे। इस बात का उपदेश देते हुए सूत्रकार आगे का सूत्र कहते हैं...