________________ 70 1 -2-1-5 (67) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन %3D इस प्रकार स्वजन-परिवार के लोग त्राण के लिये समर्थ नहि है... यह बात कही, अब बहोत सारे कष्ट से प्राप्त कीया हुआ और सुरक्षित रखा हुआ धन भी त्राण के लिये समर्थ नहिं है, यह बात अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से हि कहेगे... V सूत्रसार : प्रस्तुत सूत्र में असंयमी, विषयाभिलाषी एवं प्रमत्त व्यक्तियों के जीवन का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि- विषय-वासना में आसक्त व्यक्ति अपने भोगोपभोगों के साधनों को जुटाने के लिए अनेक प्राणियों का छेदन-भेदन करते हैं एवं अनेक प्राणियों के धन-वैभव को लुंटता हैं। इस प्रकार वे लूट-खसूट एवं छल-कपट आदि विभिन्न उपायों से प्राणियों को त्रास देकर भोग-विलास में संलग्न रहते हैं। उनके इस कार्य में परिजन भी सहयोगी बन जाते हैं। जब वह व्यक्ति बीमार या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है, तो वे परिजन उसका पोषण करते हैं। क्योंकि- उसके सहारे से हि इनका भोग-विलास चलता है। इस लिए वे उसे स्वस्थ बनाने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करते हैं। वह प्रमादी व्यक्ति भी रातदिन उनका पोषण करने में लगा रहता है। इस प्रकार परस्पर सहयोग के द्वारा एक-दूसरे के पाप कार्यों को प्रोत्साहन देते हैं। परन्तु जब मृत्यु सिर पर आकर खडी होती है, उस समय संसार का कोई भी व्यक्ति उसकी रक्षा नहीं कर सकता और उसे अपनी शरण में लेकर मृत्यु के भय से मुक्त या निर्भय भी नहिं कर सकता है। उस मरण के समय में उस प्रमादी व्यक्ति के परिजन को अत्यल्प भी सहायता नहीं कर पाते हैं और ऐसे समय में वह भी अपने परिजनों को सहयोगी नहि बन सकता है। अतः इसका निष्कर्ष यह निकला कि- संसार में कोई भी व्यक्ति किसी को शरण नहीं दे सकता / प्रस्तुत सूत्र में प्रमादी व्यक्तियों के लिए एक वचन का प्रयोग किया गया है। इसका कारण यह है कि- सभी प्रमादी व्यक्तियों का जाति के रूप में वर्णन किया गया है। व्यवहार में भी हम जाति विशेष के लिए एक वचन का ही प्रयोग करते हैं। इससे स्पष्ट हो गया कि- काल की कराल चपेट से कोई भी स्वजन व्यक्ति बचाने में समर्थ नहीं है। उस समय परिवार भी उससे मुंद मोड़ लेता है। ऐसी स्थिति में धन-वैभव उसके क्या काम आ सकता है ? जब चेतन व्यक्ति भी उसे मरण काल से बचाने में समर्थ नहीं है, तो जड़ द्रव्य-धन उसे क्या सहारा दे सकता है ? अथवा कुछ भी सहारा नहीं दे सकता है। इसी बात को अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्र से कहेंगे... .