SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 38 1 - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन इस से स्पष्ट होता है कि उक्त संबोधन का विशेष्य पद जम्बू स्वामी ही है / इस तरह विशेष्य पद का अध्याहार कर लेने पर अर्थ होगा कि- हे आयुष्मान् जम्बू ! संस्कृत-व्याकरण के अनुसार अतिशय-दीर्घ अर्थ में 'आयुष्' शब्द से 'मतुप्' प्रत्यय होकर आयुष्मान् शब्द बनता है / उस तरह आयुष्मान का अर्थ हुआ-दीर्घजीवी / बड़ी आयु वाले व्यक्ति को दीर्घजीवी कहते हैं / श्री जम्बू स्वामी को दीर्घजीवी कहने के पीछे तीन कारण हैं / प्रथम तो यह हैं कि जिस समय आर्य सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी को आचाराङ्ग सूत्र का वर्णन सुनाने लगे, उस समय वे बड़ी उम्र के थे, लघु वय के नहीं / अतः आर्य सुधर्मा स्वामी उन्हें आयुष्मान् शब्द से संबोधित कर के उनकी आयुगत परिपकता बताकर, उन में श्रुतज्ञान तथा उपदेश श्रवण, ग्रहण, धारण एवं आराधन करने की योग्यता अभिव्यक्त कर रहे प्रस्तुत संबोधन का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि जिससमय जम्बू स्वामी आचाराङ्ग सूत्र का श्रवण कर रहे थे, उस समय भले ही वे बड़ी उम्र के न रहे हों, परन्तु मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्याय इन चार ज्ञानों से युक्त आर्य सुधर्मा स्वामी द्वारा अपने ज्ञान से अपने शिष्य के भावी जीवन को दीर्घ देखा गया हो और उन्हें दीर्घजीवी जान कर ही इस संबोधन से संबोधित किया हो / उनकी अन्तरात्मा ने इस बात को स्वीकार किया हो कि जम्बू दीर्घजीवी है, लम्बे समय तक जीवित रह कर यह जिन शासन की सेवा करेगा, जन-मानस में अहिंसा, संयम और तप की त्रिवेणी प्रवाहित करके विश्व को जन्म-मरण के ताप से बचाएगा / अतः भविष्य के दीर्घ जीवन को देखकर आर्य सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को प्रस्तुत संबोधन से संबोधित किया हो / तीसरा कारण यह है कि साहित्य जगत में इस संबोधन को सुकोमल माना जाता है और आदर की दृष्टि से देखा जाता है / वह संबोधन इतना मधुर एवं प्रिय है कि इसके सुनने मात्र से हृदय-कमल की एक-एक कली खिल उठती है, शिष्य के मन में उल्लास और प्रसन्नता की लहरें लहर-लहर कर लहराने लगती हैं / जैनागमों के परिशीलन से ज्ञात होता है कि एक ऐसा युग भी रहा है कि जिस में संबोधन के लिए देवानुप्रिय शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है / साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, बालवृद्ध सभी के लिए इसका प्रयोग होता रहा है / साहित्यिक क्षेत्र में जो सम्मान देवानुप्रिय शब्द को प्राप्त था, वही आदर-सम्मान आयुष्मान शब्द को प्राप्त था / इस संबोधन पद से भाषा का लालित्य, सौन्दर्य एवं माधुर्य छलक रहा था / बताया गया है कि नियुक्तिकार ने “आउसं" शब्द के दस भेद किए हैं / उनमें संयम, . यश और कीर्तिमय जीवन वाले व्यक्ति को भी इस सम्बोधन से संबोधित करने की परंपरा रही है / इसी कारण आध्यात्मिक एवं लौकिक सभी क्षेत्रों में इस का प्रयोग होता रहा है। इसलिए वात्सल्यमय मधुर एवं सुकोमल भावना को अभिव्यक्त करते हुए आर्य सुधर्मा स्वामी
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy