________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-1-1 // 2. प्रशस्त गुण भाव चरण - सम्यग्दृष्टिओंका (आत्मिक सुखके लिये) आठों कर्मोके विनाशके लिये मूल गुण एवं उत्तर गुण स्वरूप चारित्रका आचरण... इस प्रस्तुत आचारांग सूत्रमें यही प्रशस्त गुण भाव चरण का अधिकार है, इसलिये इस सत्रके मूल एवं उत्तर गुणोंके प्रतिपादक सभी (नव) अध्ययनों का परिशीलन कर्मोंकी निर्जरा के लिये ही करना चाहीये... सार्थक नामवाले नव अध्ययनोंका नाम-निर्देश नियुक्तिकी गाथाओंमें बतातें हैं... नि. 31 ल शस्त्रपरिज्ञा लोकविजय शीतोष्णीय सम्यक्त्व लोकसार धूत . महापरिज्ञा विमोक्ष उपधानश्रुत ; 9. . नि. 32 इस प्रकार प्रथम श्रुतस्कंधके नव अध्ययन स्वरूप आचारांग सूत्र है... एवं द्वितीय श्रुतस्कन्धमें चार चूलिका - (16 अध्ययन) में इसी हि पंचाचारकी विशेष बात कही है... अब उपक्रमके अंतर्गत अर्थाधिकार कहते हैं... इसके दो भेद है... अध्ययनार्थाधिकार... उद्देशार्थाधिकार... अब प्रथम शस्त्र परिज्ञा आदि नव (9) अध्ययनोके अर्थाधिकार कहते हैं... नि. 33/34 1. पृथ्वीकायादि जीवोंको पीडा न हो ऐसा संयम... अर्थात् पृथ्वीकायादि जीवोंकी हिंसा न करें... ऐसा संयम जीवन जीवोंकी अस्तित्वके विज्ञानसे हि हो शके... अतः जीवोंका अस्तित्व एवं जीवोंकी हिंसा से विरमण का प्रतिपादन हि यहां शस्त्रपरिज्ञा नामके प्रथमाध्ययनका अधिकार है...