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________________ 20 // 1-1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन मनुष्योंकी एक हिं जाति थी... जब ऋषभदेव राजा बने तब जो लोग ऋषभदेव राजाके आश्रित रहे वे क्षत्रिय कहे गये... शेष सभी लोग शोचन-रोदन के कारण से शुद्र... जब अग्निकाय की उत्पत्ति हुई तब लुहार आदि शिल्प एवं व्यापार की प्रवृत्तिके कारण से वैश्य... जब भगवान् ऋषभदेव को दीक्षा लेनेके बाद केवलज्ञान हुआ तब भरत चक्रवर्तीने काकिणी रत्नसे जिन्हें तीन रेखा अंकित करी, वे श्रावक हि ब्राह्मण बने यह चार वर्ण शुद्ध है... शेष सभी वर्ण वर्ण-वर्णातर से बने हैं... नि. 20 वर्ण-वर्णांतर के संयोगसे 16 वर्ण बने... उनमें से सात वर्ण एवं नव वर्णांतर है... ये दोनों विभागको स्थापना ब्रह्म कहते हैं... अब पूर्व सूचित 4+3 वर्ण अर्थात् 7 वर्ण कहते हैं... नि. 21 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य एवं 4. शुद्र यह चार प्रकृति याने वर्णोमें अन्यतरके योगसे 3 वर्गों की उत्पत्ति हुई है... वह इस प्रकार... 1. ब्राह्मण के द्वारा क्षत्रिय स्त्रीसे... श्रेष्ठ क्षत्रिय अथवा शंकर क्षत्रिय... 2. क्षत्रिय के द्वारा वैश्य स्त्री से... श्रेष्ठ वैश्य अथवा शंकर वैश्य... 3. वैश्यके द्वारा शुद्र स्त्री से... श्रेष्ठ शुद्र अथवा शंकर शुद्र... इस प्रकार 4 शुद्ध वर्ण + 3 वर्णशंकर = 7 वर्ण हुए... अब वर्णातरके नव प्रकार कहते हैं... नि. 23 - 1. 2. ब्रह्म पुरुष क्षत्रिय पुरुष ब्राह्मण पुरुष + + वैश्य स्त्री शुद्र स्त्री अंबष्ठ उग्र निषाद / परासर 3. शुद्र स्त्री 24 शुद्र पुरुष वैश्य पुरुष वैश्य स्त्री क्षत्रिय स्त्री अयोगव मागध + -
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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