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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१ - 1 - 1 - 1 // और भाव आचाल = पंचाचार... आगाल = सम भूमितलमें रहना... यह नामादि भेदसे चार प्रकारका है... उनमें तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आगाल - जल का निम्नस्थानमें रहना और भाव आगाल - ज्ञानादि पंचाचार... क्योंकि यह पंचाचार रागादि रहित आत्मामें रहते हैं... आकर - भंडार - निधि.... यह नामादि भेदसे चार प्रकारका है... उनमें तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आकर = चांदी-सोनारत्नोंकी खदान... और भाव आकर = ज्ञानादि पंचाचार... क्योंकि यहां संवर एवं निर्जरा आदि गुणरत्नोंकी प्राप्ति होती है अतः यह आचारांग ग्रंथ हि भाव आकर है... आश्वास - सान्त्वना = आश्वासन... यह भी नामादि भेदसे चार प्रकारका है... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आश्वास - नौका जहाज - द्वीप - बेट... और भाव आश्वास - ज्ञानाचारादि पंचाचार... आदर्थ - दर्पण - प्रतिबिंब देखने योग्य... यह भी नामादि भेदसे चार प्रकारका है तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आदर्श - दर्पण - काच और भाव आदर्श - यह आचारांग सूत्र हि भाव आदर्श है क्योंकि - यहां आत्माका प्रतिबिंब दिखता है...... अब अंग पदका अर्थ लिखते हैं.... जिससे वस्तुका स्वरूप प्रकट हो शके वह अंग यह भी नामादि भेद से चार प्रकारका है.... .. तद्व्यतिरिक्त द्रव्य अंग = मस्तक - भुजा - हाथ - पांव... और भाव अंग = ज्ञानादि पंचाचार... आचीर्ण - आसेवन = पुनः पुनः अभ्यास... यह नाम - स्थापना - द्रव्य - क्षेत्र - काल - भाव... 6 प्रकार... नाम - स्थापना - सुगम है... तद्व्यतिरिक्त द्रव्य आचीर्ण - सिंह आदि वन्य प्राणीयोंका तृण-घास को छोडकर मांसका भक्षण करना... क्षेत्र आचीर्ण - वाल्हीक देशमें - सक्तु = साथवा... कोंकण देशमें - पेया - राब वगैरह... काल आचीर्ण - गरमीके दिनों में चंदनका द्रव सरस सुगंधी पाटल - शीरिष - मल्लिकादि पुष्प एवं सुगंधी मलमलके बारीक वस्त्र...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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