________________ // 1-1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन यहां " केन" द्वार में उपक्रम निक्षेप अनुगम एवं नय यह द्वार उपयोगी है अतः वह लिखते हैं... कितने गुणवाले आचार्य-गुरु अनुयोग-व्याख्या करते है ? इस अनुसंधान में कहते हैं कि... 1. आर्य देश... आर्य देशमें जिन्होंका जन्म हुआ हो ऐसे... क्योंकि... ऐसे आचार्य हि श्रोताओंको अच्छी तरहसे प्रतिबोध कर शके... 2. उत्तम कुल... पिता के वंश को कुल कहते हैं... इक्ष्वाकु... ज्ञातकुल इत्यादि... क्योंकि ऐसे हि उत्तम कुलमें जन्मे हुए हि द्रढता के साथ जवाबदारी अच्छी तरह से निभाते है... 3. उत्तम जाति... माता के वंश को जाति कहते हैं... क्योंकि उत्तम वंशमें जन्म ली / हुइ मां का संतान-पुत्र हि विनीत हो शकता है... 4. उत्तम रूप... पांचो इंद्रियोंसे संपूर्ण सांगोपांग अखंड शरीरवाले आचार्य होते हैं क्योंकि... देहके आकारसे हि गुण जाने जाते है... संहनन-धृतियुक्त... सूत्र की व्याख्या एवं धर्मकथा कहने में सदा स्वस्थ एवं प्रसन्न हो शकते हैं... अनाशंसी... श्रोताओंसे वस्त्र-पात्र आदि कोइ भी वस्तुकी आशंसां न रखनेवाले आचार्य होते हैं... अविकत्थन... श्रोताओंका हित हो वैसी प्रमाणोपेत = मर्यादित बातें कहनेवाले आचार्य होते हैं... अमायी... माया-कपट नहिं करतें किंतु सरल भावसे हि धर्मकथा कहनेवाले आचार्य होते हैं... इसीलिये सभी को विश्वासपात्र होते है... 9. स्थिरपरिपाटी... गुरु परंपरासे पढे हुए ग्रंथोके सूत्रार्थको न भूलनेवाले आचार्य होते है... 10. ग्राहावाक्य.... जिनकी आज्ञा याने उपदेशको सुनकर सभी लोग सहर्ष अङ्गीकार करते है... 11. जितपर्षद् - राजा आदि की सभामें क्षोभ पाये बिना हि धर्मोपदेश देनेमें सफल . रहनेवाले आचार्य होते हैं... 12. जितनिद्र - जो स्वयं अप्रमादी है अतः अपने आश्रित शिष्योंको समय पर