SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐 1 - 1 - 1 - 1 // स्थापना निक्षेप... सुगम है... द्रव्य निक्षेप... द्रव्यानुयोग के दो भेद है... आगम से... . 2. नो आगमसे... आगमसे... अनुयोग-पद के ज्ञाता किंतु अनुपयोगी तो आगमसे... तीन प्रकार... 1. ज्ञ शरीर 2. भव्य शरीर... 3. तद्व्यतिरिक्त... 1. ज्ञ शरीर... . ज्ञाता का मृतक कलेवर.. भव्य शरीर... भविष्यमें जो जानेगा वह बालक... 3. तद्व्यतिरिक्त... सेटिका (चपटी बजाने) से... या आत्मा एवं परमाणु आदि का... निषद्या - बेठक - आसन आदि में बैठकर... जो अनुयोग किया जाय वह तद्व्यतिरिक्त द्रव्यानुयोग... क्षेत्रानुयोग... जिस क्षेत्रसे... क्षेत्रका... या क्षेत्रमें... जो अनुयोग किया जाय वह क्षेत्रानुयोग... . कालानुयोग... जिस कालसे... कालका... या कालमें... जो अनुयोग किया जाय वह कालानुयोग... वचनानुयोग... एकवचन... द्विवचन... या बहुवचन से जो अनुयोग किया जाय वह वचनानुयोग... भावानुयोग.... दो प्रकार से... 1. आगम से... 2. नो आगम से... 1. आगम से... ज्ञाता एवं उपयोगी... 2. नो आगम से... औपशमिक क्षायोपशमिक एवं क्षायिक आदि भावोंसे जो अनुयोग किया जाय वह भावानुयोग... शेष द्वारों को आवश्यक सूत्र से समझ लीजीयेगा... किंतु यहां केवल अनुराग का हि प्रस्ताव होनेसे और वह अनुयोग आचार्य याने गुरुके अधीन है अतः “केन" द्वारका विवरण लिखते हैं...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy