SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 308 // 1-1 - 7 - 7 (62) म श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन यह अट्ठारह पापस्थानकको स्वयं न आचरें, अन्योंके द्वारा ये पाप न करावें, और इन पापोंको करनेवाले अन्यलोगोंकी अनुमोदना न करें... इस प्रकार इन अट्ठारह पापस्थानकोंकी परिज्ञा याने पुरी (संपूर्ण) जानकारीके साथ वह साधु स्वकायशस्त्र, परकायशस्त्र एवं उभय कायशस्त्र स्वरूप त्रिविध शस्त्रसे पृथ्वीकायादि छह (6) जीवनिकायका स्वयं आरंभ न करें, अन्यके द्वारा आरंभ न करावे, और आरंभ करनेवाले अन्यकी अनुमोदना न करे... इस प्रकार जिस परीक्षक साधु ने यह छह (E) जीव निकायके शस्त्र-समारंभ स्वरूप पापकर्मका ज्ञपरिज्ञा से जानकर और प्रत्याख्यान परिज्ञासे त्याग कीया है, वह हि साधु, अन्य साधुकी तरह प्रत्याख्यात पापकर्मा है... यहां “इति" शब्द अध्ययनकी समाप्ति सूचक है, और "ब्रवीमि" पद पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी कहतें है कि- यह सब कुछ में मेरी मनीषा = बुद्धिसे नहिं कहता हूं, किंतु घनघातिकर्मोके क्षयसे प्रगट हुए केवलज्ञानवाले श्री वर्धमानस्वामीजी के उपदेशसे हि जानकर कहता हुं... उन चोवीशवे तीर्थकर श्री वर्धमान स्वामीजीको सभी देवदेवेंद्रोने नमस्कार कीया है और वे परमात्मा चौतीस (34) अतिशयवाले है... यहां सूत्रानुगम पूर्ण हुआ है तथा निक्षेपनियुक्ति और सूत्रस्पशिनियुक्ति भी पूर्ण हुइ है... अध्ययन-१ उद्देशक-७ समाप्त... अब नैगम आदि सात नय कहतें हैं... इन सात नयोंका स्वरूप अन्य शास्त्रमें विस्तारसे कहा गया है, संक्षेपसे सभी नयोंको दो विभागमें बांट दीया है... 1. ज्ञाननय... 2. चरणनय... ज्ञाननय कहता है कि- मोक्षका मुख्य साधन ज्ञान हि है, क्योंकि- ज्ञान हि हितकी प्राप्ति एवं अहितके परिहार (त्याग) में समर्थ है... और ज्ञान हि सकल दुःखोका नाश करता है... क्रिया नहि... चरणनय कहता है कि- मोक्षका मुख्य साधन क्रिया = चारित्र हि है... क्योंकि- सभी पदार्थोंका अन्वय एवं व्यतिरेकसे विवेक = आचरण हि आत्माको परम निर्वाण स्वरूप मोक्षकी प्राप्ति करवाता है... इस प्रकार- सकल पदार्थोंको स्पष्ट करनेवाला ज्ञान भी चरण (चारित्र) के अभावमें संसारके कारणभूत कर्मोका विच्छेद नहिं कर शकता... और कर्मोके छेदके बिना मोक्ष हो नहिं शकता... इसलिये मोक्षका मुख्यकारण ज्ञान नहिं है, किंतु चारित्र हि है... और मूल एवं उत्तर गुण स्वरूप चारित्र होने पर हि घातिकर्मोका छेद होता है, और घातिकर्मोके विच्छेदसे हि अव्याबाध सुख स्वरूप मोक्षकी प्राप्ति होती है, इसीलिये हि कहतें हैं कि- मोक्षकी प्राप्तिमें प्रधान कारण चारित्र ही है....
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy