________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-7-7 (62) 307 निवृत्त होनेवाले हि वसुमान् मुनी है... द्रव्य और भाव भेदसे वसुके दो प्रकार है... उनमें द्रव्यवसु ' है मरकतमणी, इंद्रनीलमणी वजरत्न आदि, और भाव वसु है सम्यग् दर्शन, ज्ञान चारित्र आदि... यह भाव वसु जिसके पास है वह वसुमान् साधु है... यहां भाव-वसुवालेका अधिकार है... सर्व प्रकारके ज्ञान विशेषसे, सभी द्रव्य एवं पर्यायोंको जाननेवाला, सामान्य एवं विशेष लक्षणवाले सभी पदार्थोके यथार्थ ज्ञानवाला आत्मा हि सर्वसमन्वागतप्रज्ञान कहलाता है, अथवा शुभ एवं अशुभ फलके परिज्ञानसे नरक तिर्यंच मनुष्य देव एवं मोक्षसुखके स्वरूपके परिज्ञानसे अनित्य आदि गुणवाले संसारके सुखमें विरक्त (नाराज), एवं केवल मोक्ष-पदके अनुष्ठानको करनेवाली आत्मा हि सर्वसमन्वागत प्रज्ञान कही जाती है... इसलिये ऐसी आत्मा इहलोक एवं परलोकके विरुद्ध आचरणको न करे... अधःपतनके कारण ऐसे अठारह (18) पापकर्म१. प्राणातिपात - जीवहिंसा जुठ बोलना अदत्तादान चोरी करना 4. मैथुन - - अब्रह्म (कामक्रीडा) का आसेवन परिग्रह धन-धान्यादि नव प्रकारका परिग्रह 6. क्रोध - गुस्सा करना मान अभिमान करना मृषावाद ॐ ॐ माया कपट करना . लोभ पुद्गल पदार्थोकी इच्छा करना राग करना - प्रीति करना द्वेष - अप्रीति व्यक्त करना 11. 12. राग (प्रेम) द्वेष कलह अभ्याख्यान पैशुन्य परपरिवाद रति-अरति . झगडा करना जुठे आल चढाना . चाडी चुगली खाना निंदा करना राजीपा-नाराजी व्यक्त करना कपटके साथ झुठ बोलना पौद्गलिक पदार्थोंका गुप्त राग याने अभिलाषा... 17. माया मृषावाद - मिथ्यात्वशल्य -