________________ श्री राजेन्द्र सबोधनी आहोरी-हिन्दी-टीका // 1-1-6-1 (49) 267 मनकी वेदना - प्रियका वियोग एवं अप्रियके संयोग आदि से होनेवाली मानसिक चिंता-पीडा... और भी अनेक प्रकारसे वेदना- ज्वर, अतीसार, कास (खांसी), श्वास (दम), भगंदर, शिरोरोग = माथेकी पीडा, शल्य, गुदकीलक = बवासोर आदि रोगोंसे उत्पन्न होनेवाली पीडा... * . अब विस्तारसे उपभोग का स्वरूप कहतें हैं... ल ॐ नि. 161-162 मांसके लिये- मृग (हरण), सुअर (भंड) आदि... चमडेके लिये- चित्ता आदि... रोमके लिये- चूहा आदि... पिच्छेके लिये- मोर, गीध... पुच्छके लिये... चमरी आदि... दांतके लिये... हाथी, वराह आदि... का वध... कितनेक लोग उपर कहे गये प्रयोजन (कारण) से त्रस जीवोंका वध करते हैं, और कितनेक लोग प्रयोजन विना हि केवल क्रीडा के लिये हि सजीवोंका वध करतें हैं... और कितनेक मनुष्य... प्रसंग दोषसे... जैसे कि- मृग (हरण) का लक्ष्य बनाकर फेंके हुए पत्थर, बाण आदिसे बीचमें रहे हुए अनेक कबुतर, टिटिहिरी, पोपट, सारिका आदिका वध हो जाता है... कर्म याने कृषि आदि अनेक प्रकारके कर्म करनेवाले मनुष्य बैल आदिको रज्जु - दोरडीसे बांधतें है, चाबुक एवं लकडीसे मारतें हैं, और अनेक छोटे-बडे सजीवोंके प्राणोका नाश करते हैं... ॐ . इस प्रकार विधान (भेद) आदि द्वारोंका समूह कह कर अब उपसंहार करते हैं... नि. 16 यहां कहे गये विधान (भेद) आदि द्वारोंसे अतिरिक्त बाकीके शेष सभी द्वार पृथ्वीकायकी तरह हि समझीयेगा... इस प्रकार यहां प्रसकायकी नाम निक्षेप नियुक्ति पूर्ण हुइ... अब सूत्राऽनुगममें सूत्रके पदोंका अस्खलित रीतसे उच्चार करना चाहिये... वह सूत्र - यह है... पढिये...