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________________ 226 1 - 1 - 5 - 1 (40) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन 9. हरित = तंदुलीयक, धूयारुह, वस्तुल, बदरक, चिल्ली, पालक आदि.. 10. औषधि = शाली (डांगर-चावल) व्रीहि (जव) गोधूम (गेहुं) यव, कलम, मसूर, तिल, ___मुद्ग (मृग), माष (उडद) निष्पाव, कुलत्थ, अतसी, कुसुंभ, कोद्रव, कंगु, आदि... 11. जलरुह = उदक, अवक, पनक, शैवल (सेवाल-लीलयुग) कलंबुक, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, पुंडरीक आदि... 12. कुहुण = भूमिस्फोटक, कुंडक, उद्देहलिका आदि... यह सभी प्रत्येक वनस्पतिकाय जीव वृक्षोंके मूल, स्कंध (थड) कंद, त्वक् (छाल) शाखा, प्रवाल आदिमें प्रत्येक जीव असंख्य होतें हैं... साधारण वनस्पतिकाय अनेक प्रकारसे होते हैं... वे इस प्रकार- अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिंगोडे, मूले, कृष्णकंद, सूरणकंद, काकोली, क्षीरकाकोली आदि... अब अन्य प्रकार से वनस्पतिकाय जीवोंका संक्षेपमें छह (2) प्रकार होतें हैं, उन्हे अब नियुक्ति गाथासे कहतें हैं.. नि. 130 1. अग्रबीज... कोरंटक आदि मूलबीज... कदली (केला) आदि / स्कंधबीज... अरणिक (अरणि) आदि पर्वबीज... इक्षु (शेलडी) वंश, वेत्र (नेतर) आदि बीजरुह... शालि, व्रीहि आदि संमूर्च्छनज... पद्मिनी, शृंगारक (शिंगोडे) सेवाल आदि... इस प्रकार संक्षेपसे वनस्पतिकायके छह (6) प्रकार है... अर्थात् छह (E) प्रकारसे अधिक भेद नहिं है.. अब प्रत्येक वनस्पतिकायके लक्षण कहतें हैं...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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